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Home सीधी दर्पण स्वर्गीय इंद्रजीत कुमार – जन सेवा जिनका परम धर्म था *चिंतामणि तिवारी .....

स्वर्गीय इंद्रजीत कुमार – जन सेवा जिनका परम धर्म था *चिंतामणि तिवारी .....

सीधी-सार्वजनिक जीवन में सबसे प्रधान गुण है जनसेवा की भावना और प्रतिबद्धता।  विश्वसनीयता सबसे बड़ी पूंजी होती है । स्वभाव में पारदर्शिता को  जनमानस में आदर भाव की दृष्टि से देखा जाता है । यह राजनीति को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित करती है । इन्ही गुणों से भरा पूरा था स्वर्गीय इंद्रजीत कुमार पटेल का व्यक्तित्व।  वे सरल स्वभाव के सहज नेता थे । आम लोग उन पर उन पर अटूट विश्वास करते थे।   उन्होंने किसी का विश्वास टूटने नहीं दिया । जिन लोगों ने स्वर्गीय श्री इंद्रजीत कुमार पटेल को करीब से देखा है वे जानते हैं कि उनकी दिनचर्या कितनी सादगीपूर्ण और आदर भाव जगाने वाली थी । रोज रामायण की चौपाई का पाठ करने के साथ उनका दिन शुरू होता था। वे असमय विदा हो गए लेकिन उनकी कई स्मृतियां  जनमानस में तरोताजा है । आज उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर न सिर्फ विंध्य प्रदेश बल्कि संपूर्ण मध्यप्रदेश के नागरिक श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं। उन्होंने मध्यप्रदेश के मंत्री और कई महत्वपूर्ण पदों की जिम्मेदारी सम्हाली लेकिन पद से बड़ा उनका अपना व्यक्तित्व था। 
सीधी विधानसभा क्षेत्र के ग्राम सुपेला में 5 मार्च 1943 में जन्में और अपनी राजनीतिक यात्रा में प्रदेश की राजनीति को भी दिशा दी। उनका कोई विरोधी नहीं था। वे कहते थे राजनैतिक संघर्ष  क्षणिक होता है । इससे मन में बैर नहीं आना चाहिए। इसलिए वे सभी के प्रिय थे। 
देश सेवा एवं समाजसेवा का व्रत लेने वाले स्वाभिमानी श्री इन्द्रजीत कुमार ने लम्बे राजनीतिक करियर में सन् 1965 से 1970 तक ग्राम पंचायत सुपेला के पंच तथा सरपंच रहकर अपनी राजनैतिक जीवन की शुरुआत की। बाद में 1973 से 1977 में ब्लाॅक युवक कांग्रेस एवं सदस्य तहसील स्तरीय 20 सूत्रीय कार्यक्रम के सदस्य रहे। सन् 1989 से 1999 तक जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय की प्रबंध समिति के सदस्य रहे।
वर्ष 1977 से लगातार म.प्र. शासन के सदस्य पर आसीन होने के साथ साथ आवास एवं पर्यावरण मंत्री तथा 1994 से 1996 तक स्कूल शिक्षा मंत्री रहे।
अपने जीवन काल के अंतिम दशकों में मंत्री या विधायक पद पर न रहने के बावजूद भी जिले और प्रदेश के लोग उन्हें सम्मान से “मंत्रीजी” कहकर ही संबोधित करते रहे। वे सच्चे जननायक थे। 
स्वर्गीय श्री इंद्रजीत कुमार सरल,सहज,सादगी की प्रतिमूर्ति थे। गरीबों ने अपना नेता खो दिया। वे एक ऐसी  शख्सियत थे जिनसे कोई भी गरीब,असहाय,शोषित, पीड़ित  सीधे  बड़ी सहजता के साथ बातें कर सकता था और अपनी पीड़ा  बता कर सकता था। स्वर्गीय श्री कुमार को सरल,सहज और सादगी पूर्ण व्यक्तित्व ने गरीबों का नेता बना दिया। एक आम नागरिक  भी उनसे पूरी आत्मीयता रखता था और बेझिझक उनसे अपने दिल की बात करता था। उनसे न्याय की उम्मीद कर सकता था। स्वर्गीय श्री इंद्रजीत कुमार ने किसी को निराश नहीं किया। अहंकार ने कभी उन्हें छुआ ही नही। वे कहते थे कि सेवा सबसे बड़ा धर्म है। सेवा से ही अहंकार जाता है। जो सेवा नहीं कर सकता उसे अपने पद का अहंकार हो जाता है।  वह  जनता से बात करने का वो सलीका भी भूल जाता है ।  यही बात 'श्री इंद्रजीत कुमार' को दूसरे राजनीतिज्ञों से अलग करती थी। उन्होंने तकरीबन 40 साल के राजनीतिक कैरियर में प्रदेश सरकार में कई बार कैबिनेट मंत्री जैसे बड़े पदों पर रहने तथा कई पुरस्कारों से पुरस्कृत होने के बाद भी उनके अंदर कोई घमंड  नहीं था। इसी सादगी  के कारण विपक्षी दलों के दिग्गज भी उनके खिलाफ चुनाव लड़ने से कतराते थे।
स्वर्गीय श्री पटेल  निष्ठा, प्रतिबद्धता, ईमानदारी और समर्पण की मूर्ति थे। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में अवसरवाद को हमेशा हिकारत की नजर से देखा।  राजनीतिक मूल्यों को अक्षुण्ण बनाए रखने में कोई कोताही नहीं की। वे  ऐसे व्यक्ति थे जिन पर आंख मूंदकर विश्वास किया जा सकता था। जब वे राजनीति में सक्रिय हुए तो पिछड़े वर्ग के हितों को उन्होंने संरक्षण दिया। उनके लिए लड़े।
सरपंच से लेकर मंत्री तक का उनका सफर जमीन से जुड़ा रहा। उन्होंने हमेशा उन लोगों की बात की जिन्हें न्याय की जरुरत थी।  जो वंचित वर्ग से जुड़े थे। स्वर्गीय श्री इंद्रजीत पटेल विंध्य क्षेत्र में अच्छी पकड़ रखते थे। वे कांग्रेस के कार्यकाल में कैबिनेट मंत्री भी थे। 
शिक्षा मंत्री के रूप में स्वर्गीय श्री पटेल का योगदान हमेशा याद रखा जाएगा । उनके नेतृत्व में संस्कृत बोर्ड और मदरसा बोर्ड का गठन हुआ था। उन्होंने अंधे विद्यार्थियों के लिए ब्रेल लिपि में पाठ्य पुस्तकें तैयार करवाने में पहल की थी। दूरदराज के क्षेत्रों में स्थित विद्यालयों के लगातार निरीक्षण की परंपरा भी उन्होंने शुरू की थी। पर्यावरण मंत्री के रूप में वे चाहते थे कि मध्यप्रदेश को नीम राज्य घोषित किया जाए क्योंकि यहां पर नीम के पेड़ बहुतायत में है । भोज वेटलैंड  परियोजना उनके नेतृत्व में पूरी हुई और झील संरक्षण प्राधिकरण के गठन का  उनका मौलिक विचार था जो आज फलीभूत हो रहा है । उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर नागरिकों की ओर से सादर नमन।

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