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Home विंध्य प्रदेश 500 वर्ष पुरानी परंपरा टूटी, दर्शन के लिए निकले रीवा रियासत के राजा 'राम', जानें क्या थी प्रथा?

500 वर्ष पुरानी परंपरा टूटी, दर्शन के लिए निकले रीवा रियासत के राजा 'राम', जानें क्या थी प्रथा?



रीवा(ईन्यूज़ एमपी)- अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के मौके पर मध्य प्रदेश के रीवा में भगवान राम की झांकी निकाली गई. इसके साथ ही रीवा में पिछले 500 सालों से चली आ रही परंपरा टूट गई. आपको बता दें कि रीवा रियासत यानी की 7 दशकों के पहले कहा जाए तो आजादी के पहले मध्य प्रदेश में विलय के पहले रीवा कभी विंध्य प्रदेश की राजधानी हुआ करती थी। आज उसी को लेकर हम बात करेंगे।

बता दें कि रीवा रियासत के राजा भगवान राम हर साल दशहरे के दिन ही शहर में दर्शन के लिए निकलते हैं. लेकिन, इस बार रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के मौके पर राजाधिराज भगवान राम की गद्दी पूजन कर शहर में दर्शन के लिए उनकी झांकी निकाली गई. इस दौरान शहरवासियों में जश्न का माहौल दिखा.

खुद को लक्ष्मण का भक्त मानते हैं रीवा नरेश
बता दें कि भगवान राम को गद्दी में बैठाकर शहर में भ्रमण कराने की परंपरा रीवा रियासत के पहले राजा व्यग्र देव ने की थी. व्यग्र देव गुजरात से रीवा आए थे, वे अपने आप को भगवान लक्ष्मण का भक्त मानते थे. चूंकि भगवान राम ने इस क्षेत्र में राज करने के लिए इसे छोटे भाई लक्ष्मण को दिया था और लक्ष्मण भगवान राम को अपना राजा मानकर पूजते थे, इसलिए भगवान लक्ष्मण की इस परंपरा को निर्वहन रीवा नरेश ने भी किया और भगवान राम को ही गद्दी में बैठाया.
अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के मौके पर रीवा के राजा भगवान राम दर्शन देने के लिए निकले.

सेवक की भूमिका में रहे रीवा के राजा
भगवान राम ने बांधवगढ़ को अपने छोटे भाई लक्ष्मण को दिया था, जिसके चलते बांधवगढ़ (रीवा रियासत) के नरेश राजगद्दी में कभी नहीं बैठे और लक्ष्मण की तरह भगवान राम की आराधना कर राजगद्दी में भगवान राम को ही बैठाया. रीवा महाराज हमेशा सेवक की भूमिका में ही रहे. बता दें कि रीवा रियासत के राजा भगवान राम साल में सिर्फ एक बार ही शहर भ्रमण पर निकलते थे, और शहरवासियों को दर्शन देते थे. लेकिन, आज यह पिछले 500 साल से चली आ रही परंपरा टूट गई.

रीवा रियासत के अंतर्गत आता था चित्रकूट
रीवा रियासत की बात की जाए तो, वर्तमान में इस रियासत के महाराजा पुष्पराज सिंह हैं. वे अपने वंश की 36 वीं पीढ़ी है. वहीं, रीवा के युवराज और वर्तमान में सिरमौर से विधायक दिव्यराज सिंह अपने वंश की 37 वीं पीढ़ी हैं. इस इलाके में आज भी भगवान राम को वनवासी माना जाता है और बांधवगढ़ से लेकर रीवा तक, जहां भी रीवा रियासत फैली थी भगवान राम को पूजा जाता है. यह बात इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है. क्योंकि भगवान राम ने अपने वनवास का ज्यादातर समय रीवा रियासत के अंतर्गत आने वाले चित्रकूट में बिताया था.

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