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विलुप्त होती दुर्लभ औषधि पौधों

दुनियाभर मे विलुप्त हो चुके कई दुर्लभ औषधि पौधों को रीवा के वैज्ञानिको ने ढूंढ निकाला है ये बहुमूल्य औषधि पौधे संजीवनी से कम नही है इनके सेवन से असाध्य और गंभीर बीमारियो से निजाद मिलती जाती है। ऐसे पौधो को वन विस्तार एंव अनुसंधान विभाग संरक्षित करने का प्रयास किया है। वर्षो पहले कश्मीर और अमरकंटक की पहाड़ियों से लुप्त हो चुके कई औषधि पौधें वन विस्तार अनुसंधान रीवा की रोपडी में पल रहे है। इन पौधों मे शल्यकर्णी, सोमवल्ली और दहिमन काली बुच, गुलाबकाबली, सनया जैसे बहुमूल्य पौधे है। रोपणी में दुर्लभ पौधे को संरक्षित करने का बीड़ा उठाया गया था और इनका प्रयास रंग लगाया यहां पर कई दुर्लभ पौधो की प्रजातियां तैयार कर ली गई। आमतौर पर महुआ, इमली और कैथा जैसे पेड़ कई वर्षो बाद फल देेते है लेकिन प्रदेश की इकलौती रोपणी में एक वर्ष में फल देने वाले महुआ, इमली और कैथा के पेड़ का इजाद किया गया है। शल्यकर्णी और सोमवल्ली का दुर्लभ पौधा दुनिया में मात्र रीवा जिले मे पाया जाता है इसी तरह अमरकंटक की पहाडियो में पाया जाने वाला दहिमन भी विलुप्त हो चुका है। सोमवली का उल्लेख वेद पुराणो में मिलता है कहा जाता है कि देवाओं और ऋषिमुनी सोमवली का सेवन कर चिर योवन की प्राप्ति किया करते थे। सोमवली के सेवन से असाध्य बीमारियां ठीक हो जाती है। इसी तरह शल्यकर्णी भी शल्य की अचूक औषधि है इसके रस से बडे से बडा घाव महज 8-10 घंटे मे भर जाता है। इसका उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। गुलबकाबली आंख की बीमारी को ठीक करने के लिए होती है तो दहिमन में ब्लर्डप्रेसर कम करने की क्षमता है। हाई और लो ब्लर्डप्रेसर होने पर इसे महज पकडने मात्र से ब्लर्डप्रेसर सामान्य हो जाता है और घर में रखने से विषैले जीव जन्तु भी नही आते। आमतौर पर कई औषधियां हमारे सामने होती है लेकिन उन्हे हम समझ नही पाते इसी का नतीजा है कि कई औषधियों की प्रजातियां नष्ट हो गई है।

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