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सीधी : चेहरे चर्चित चार - नेता अफसर विधिक पत्रकार ......

आदरणीय पाठक बंधु
सादर अभिवादन स्वीकार हो।
हम आपके लिए एक ऐसा धारावाहिक लेख प्रस्तुत कर रहे है, जिसमे चार ऐसे लोंगो की जानकारी विशेष है , जिन्होंने विभिन्न अलग अलग क्षेत्रो पर बहुत अच्छा कार्य करके लोंगो का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है, जैसा कि आप हेडिंग से उन कार्यक्षेत्रों के बारे में समझ गए होंगे।
मेरी पूरी कोशिश होगी कि उनलोंगो के जीवन के कुछ रोचक, सुखद, और संघर्ष के बारे में जानकारी इकट्ठा करके लिख सकूं, और सहज शब्दो के माध्यम से उस भाव को आपके सामने प्रकट कर सकूं, जिससे आप किसी भी घटना क्रम को पूर्ण रूप से सही समर्थन दे सकें।
आपका
सचीन्द्र मिश्र
सीधी

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📱 चेहरे चर्चित चार📱
नेता अफसर - विधिक पत्रकार
जिनकी कहानी कलम लिखेगी " समाजसेवी " व्यापारी और वैद्य रचनाकार ।


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👉 के.के. सिंह " भंवर साहब "✍️
पूर्व विधायक

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जीवन चक्र में असंख्य व्यक्तियों का प्रवेश स्वाभाविक है ... स्वाभाविक यह भी है की सभी का व्यक्तित्व और स्वाभाव भिन्न होता है , अत: सबको समझ पाना व उनके व्यक्तित्व की गणना सम्भव नही है। ऐसा ही एक निर्दाग चेहरा गोपदबनास से पूर्व विधायक रहे कृष्ण कुमार सिंह भवँर साहब चुरहट राव परिवार में जन्मे, जिनका जन्म मकरसंक्रांति के दिन 14 जनवरी 1949 को गंगा की गोद इलाहाबाद में हुआ था।स्कूल की पढ़ाई डेली कॉलेज इंदौर से हुई , कॉलेज की पढ़ाई इलाहाबाद प्रयागराज यूनिवर्सिटी से कृषि अभियांत्रिकी की पढ़ाई की और फिर नेशनल कॉलेज इग्लैंड से कृषि में उच्च डिग्री प्राप्त की।

छात्र जीवन मे खेती के क्षेत्र में काफी लगाव था, इस लिए सेमरिया में कृषि फॉर्म बनाया, लेकिन वो जो कृषि के क्षेत्र में जो करना चाहते थे उसे शायद उस दौर में सरल नहीं था, लेकिन आज के समय मे भी भवँर साहब कृषि वानिकी में काफी महत्वपूर्ण कार्य किये है। वर्ष 1980 के दौर में बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में पहला आधुनिक होटल भवँर साहब ने संचालित किया, जो भारतवर्ष में मशहूर था। और फिर 10 वर्ष बाद इन्होंने राजनीति में कदम रखा और पहला चुनाव गोपद बनास से 1990 में निर्दलीय विधानसभा चुनाव में चुनावी रण में मैदान पर थे, लेकिन जीत दर्ज नहीं कर सके, 1993 में मध्यावधि चुनाव हुआ उसी चुनाव में इनको जीत मिली 1993 के चुनाव में बतौर निर्दलीय विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे, फिर 1998 में हार गए, लेकिन 2003 के चुनाव में समाजवादी पार्टी से बड़े लंबे अन्तर से लगभग 30000 वोट से चुनाव जीत कर इतिहास रच दिया। फिर 2008 में गोपद बनास सीट नही रह गई फिर भी भंवर साहब सीधी विधानसभा से चुनाव लड़े लेकिन परिणाम विपरीत थे।
इसके बाद कांग्रेस के बड़े कार्यक्रमो में सीधी के मंचो पर दिखाई देते थे। 2014 लोकसभा चुनाव में टिकिट की चाह मन में थी लेकिन पार्टी की विपरीत स्थिति देखकर उस समय इन्होंने भाजपा ज्वाइन कर लिया । आश्चर्य और सच भी था कि भवँर साहब की देश की बड़ी पार्टियों में पकड़ इस तरह थी कि भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टी ने इनको 4 मार्च 2014 को सीधी लोकसभा से प्रत्यासी भी घोषित कर दिया, जबकि उस समय पार्टी की कमान मोदी और शाह की जोड़ी के हांथ में थी। लेकिन अबकी बार भवँर साहब की टिकिट दिल्ली की नहीं बल्कि सीधी की राजनीति ने अंतिम समय पर टिकिट काट दिया। भवँर साहब विधायक के रूप में एक बहुत अच्छे जनसेवक थे, लेकिन चुनाव हारने के बाद क्षेत्र में लोंगो तक उनकी पहुंच आज के दौर के हिसाब से नही थी, और हर 15 साल बाद मतदाताओं की एक नई आबादी तैयार होती है जो लगभग तीस फीसदी होती है, और इसी समय में पुरानी 30 फीसदी निष्क्रिय हो जाती है, बस यही गणित थी कि 2018 में फिर से सीधी से और फिर से समाजवादी के बैनर तले भवँर साहब ने चुनाव लड़ा लेकिन जीत हार वाले ज्योतिषयों ने इनकी गणना ही नही की, खैर कई बार चुनाव लड़ने के बहुत अदृश्य समीकरण होते है, जिनका परिणाम बाहर भले विपरीत हो पर अंदर पूर्ण अनुकूल होता है ।

भवँर साहब की विशेष उपलब्धियां भी रही हैं जिन्हें नकारा नही जा सकता , 1998-99 में लोक वानिकी अधिनियम तात्कालिक मुख्यमंत्री दिग्गविजय सिंह द्वारा परित कराया गया था। वानिकी के क्षेत्र में कार्य कर रही अंतराष्ट्रीय संस्थाओं के मांग पर निजी क्षेत्र पर वनोपज काटने तथा राजस्व वन भूमि विवाद वाले नारंगी क्षेत्र के रूप में जाना जाता था लेकिन ये योजना कांग्रेस सरकार जाते ही बंद सी हो गई थी। 2018 में सरकार आते ही भवँर साहब ने इस ओर कमलनाथ जी का ध्यान आकृष्ट कराया, जिसमे उन्होंने ''टास्क फोर्स " समिति गठित करके आलाधिकारियों को इस पर कार्य करने के निर्देश दिए, जिस समिति के भवँर साहब भी प्राइवेट सदस्य थे, इस पूरी समिति ने एक रिपोर्ट सौंपी थी, दुर्भाग्यवश सरकार नही रही और रिकॉर्ड ठंडे झोले में चला गया। भवँर साहब ने अमेरिका की एक संस्था वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट से जुड़ कर भी वानकी के क्षेत्र में पूरे भारत मे कार्य किया।अपने जिले सीधी में भी इसका बड़ा सेमिनार संस्था ने कराया था। अंत मे ये कहूंगा जो भवर साहब के जमाने का उनका कार्यकर्ता था, वो उनके कार्य करने की शैली का मुरीद है।कितने नेता बदले सत्ताएं बदली कार्यकर्ता भवँर साहब के और भवँर साहब उनके ही रहेंगे। वो स्वयं अब इस बात को स्वीकारते है कि पुरानी राजनीति आज के दौर में बिल्कुल फिट नही है। लेकिन वो खुद अब प्रदेश में तीसरी पार्टी समाजवादी का ही झंडा बुलंद करेंगे ।


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👉 राजीव मिश्र ✍️
C.E.O.
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जब कोई युवा अधिकारी अपने टैलेंट के दम पर प्रशासनिक सेवा में काबिज हो जाता है तब वो पूरे समाज के लिए हीरो बन जाता है। आइए, कुछ ऐसी ही प्रशासनिक शख्सियतों से आज रू-ब-रू होते हैं, जिनकी मेहनत पत्थर की लकीर बन कर उभर आई। जी हां हम बात कर रहे हैं 20 जुलाई 1989 को रीवा जिले के हनुमना के तेलिहा गांव में इंद्रजीत मिश्र के घर जन्मे पुत्र राजीव मिश्र की... जो वर्तमान में सीधी जिले के जनपद पंचायत सीधी में बतौर मुख्य कार्यपालन अधिकारी के पद पर पदस्थ हैं । राजीव के पिताजी पुलिस विभाग में पदस्थ थे, इसलिए जहां पिताजी का तबादला होता, परिवार वाले भी उनके साथ तबादले वाले स्थान पर चले जाया करते थे। राजीव की प्रारंभिक शिक्षा शहडोल जिले में हुई। इसके बाद वे पीएमटी की कोचिंग करने के लिए कोटा गयें, किंतु सफलता ना मिली। बाद में कॉलेज की पढ़ाई के लिए वह कानपुर चले गए जहां स्नातक की पढ़ाई कानपुर विश्वविद्यालय से एवं चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय हरियाणा से स्नातक (जेनेटिक्स प्लांट ब्रीडिंग) में किया।राजीव स्नातक में गोल्ड मैडलिस्ट भी रह चुके है।

राजीव अपनी पढ़ाई के दौरान सेंट्रल बैंक, इफको, और कृभको में चयनित हुए, किंतु पढाई अधूरी ना रह जाये इसलिए ज्वाइन नही किया। पढ़ाई समाप्त करते ही सेंट्रल गवमेंट में सीडब्लयूसी में बतौर असिटेंट मैनेजर रायपुर में नौकरी लग गई। कुछ अलग करने के जुनूनी राजीव नौकरी के दौरान ही छत्तीसगढ पीएससी की परीक्षा में शामिल हुए और परीक्षा पास कर छत्तीसगढ़ राज्य में फूड आफिसर के लिए चयनित हो गए। राजीव यहीं नहीं रुके और इसी दौरान एमपी में सब इंस्पेक्टर और व्यापम की सीड सर्टिफेकेशन आफिसर के लिए भी उनका चयन हुआ।आज जहां लोग नौकरी को लेकर तरस रहे हैं गली गली की ठोकरें खा रहे हैं , राजीव ने अपने लक्ष्य और पढ़ाई के दम पर न जाने दर्जनभर नौकरियां यूँ जाने दिया।पर राजीव की तैयारी रूकी नही, प्रथम प्रयास में ही बिना किसी कोचिंग के एमपी पीएससी में चयन हो गया, साथ साथ ही फूड कार्पोरेशन आफ इंडिया में क्लास वन सर्विस के लिए भी चयन हुआ। किंतु अपने प्रदेश में आकर सेवा करने की ललक की वजह से फूड कार्पोरेशन आफ इंडिया की नौकरी नही की।

बतौर मुख्य कार्यपालन अधिकारी उनकी पहली पदस्थापना सागर के बंडा में हुई, जहां उन्हें राज्य स्तर से उत्कृष्ट कार्य के लिए अनेको पुरस्कार मिले। इसके बाद वे कुछ समय के लिए नागौद भी पदस्थ रहे, फिर सागर के नेताओं ने वापस सागर के ही मालथौन करा लिया। इसके बाद सरकार बदलते ही घर के नजदीक आने की ललक ने सीधी बुला लिया, लगभग 1 वर्ष से सीधी में हैं, इस दौरान सीधी जनपद की दो पंचायतों ने राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार भी प्राप्त किया। राजीव स्पोर्ट्स के छेत्र में भी एक अच्छे खिलाड़ी रहे है। कालेज के दौरान ही नेशनल स्तर पर बैडमिंटन प्रतियोगिता में सम्मिलत हुये, आज भी वे व्यस्त अफसरी के दौरान भी समय निकाल कर बैडमिंटन खेला करते है। राजीव एक युवा होनहार अधिकारी होने के साथ साथ हर विधाओं में अग्रणी हैं , उन्हे साहित्य , धर्मग्रंथ , कला , खेल , पर्यावरण , पौराणिक ग्रामीण परिवेश के साथ साथ विंध्य के व्यंजनों से विशेष रुचि है । किंतु बात बात में युवापन की खनक प्रजातंत्र में एक अच्छे अधिकारी के लिये उचित नही है ' जौ प्रभुव दीन दयाल कहावा, आरतिहरन बेद जसु गावा,' 'जपहिं नामु जन आरत भारी, मिंटहि कुसंकट होहि सुखारी ।


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👉 तुलसी पाण्डेय ✍️
वरिष्ठ अधिवक्ता
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अधिवक्ता संघ का एक चर्चित चेहरा है " तुलसी पाण्डेय " जिनका जन्म 15 सितंबर 1954 को देवगमा ( बहरी) के पाण्डेय परिवार में हुआ , जिनकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में हुई ,इन्होंने सीधी कालेज से बीएससी करने के उपरांत एम ए और एलएलबी की पढाई TRS कालेज रीवा से की है । तुलसी जी 1978 में सीधी जिला न्यायालय से अपनी वकालत का श्री गणेश करके पिछले चार दशक से निरंतर वकालत पेशे में सक्रिय हैं । श्री पाण्डेय छात्र जीवन से ही राजनीति मे रुचि रखते रहे टी आर एस कालेज में छात्र नेता की दमदार पहचान बनाने में सफल नही रहे किंतु इस दौरान छात्र आन्दोलन में अनंत जेल यात्रायें की है।



वकालत के दौर में बहुत कम समय में जिला अधिवक्ता संघ के तेज तर्रार अध्यक्ष के रूप में आप जाने जाते रहे हैं। संघर्षशील व्यक्तित्व के धनी श्री पाण्डेय जी वकालत में अपनी मेहनत के बल एक अच्छा मुकाम हासिल किया। वकालत एक ऐसा पेशा है जहाँ समाजसेवा का अवसर खूब मिलता है पाण्डेय जी ने छात्र नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई थी इसलिए वकालत के साथ राजनीति में भी सक्रिय रहे और कांग्रेस पार्टी के महामंत्री, किसान काग्रेस के अध्यक्ष की जिम्मेदारी इन्होंने बखूबी निभाई थी ।बाद में काग्रेस पार्टी से मोहभंग हुआ और भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर यहाँ कुछ हासिल करने की कोशिश मे रहे लेकिन पाण्डेय जी पहले वकील फिर नेता, वकालत में कोई समझौता नहीं वहाँ वकील पक्षकार का ही संम्बंध रखते थे इसका लाभ वकालत मे हुआ परंतु राजनीतिक क्षेत्र में इसका नुकसान भी उठाना पडा।राजनीति में कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है लेकिन दुर्भाग्यवश पाण्डेय जी को आज तक खोने का अवसर ही हांसिल नही हो सका , हालांकि इसके पीछे का कारण वह " माननीय " को मानते हैं , कहते हैं कि माननीय " अग्रेसिव " हैं और मैं " रिसेसिव " वहरहाल इस मामले की सच्चाई कितनी सच है कितनी झूंठ यह एक शोध का विषय है।

श्री पाण्डेय जी दो बार स्टेट वार का चुनाव भी लडे लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी! एक ऊर्जावान व्यक्तित्व का राजनीति में बहुत कुछ हासिल करने की ललक हो और मंजिल न मिले तो मलाल लाजमी है, वरिष्ठ अधिवक्ता तुलसी पाण्डेय जी बहुत ही दिल खुश इंसान मानवीय संवेदना से भरे सामाजिक कार्यो में सदैव आगे रहने के वावजूद स्थिरता का अभाव उन्हें उनकी मंजिल तक पहुंचने मे सबसे बड़ी बाधा रही है ।


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👉मनोज पाण्डेय✍️
वरिष्ठ पत्रकार
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सीधी जिले का एक ऐसा पत्रकार जिसने अपने जीवन में लोक सेवक बनने की ठानी थी किंतु किस्मत ने कलम थमा दिया , वह चेहरा है मनोज पाण्डेय जिनका जन्म 1जून 1981 को चुरहट विधानसभा क्षेत्र के रिमारी नामक गांव में हुआ है , एमए. एल.एल.बी. की पढाई करने के उपरांत उन्होंने अधिकारी बनने का सपना संजोया था। भाग्यवश वह अधिकारी तो नही वन पाये लेकिन अपनी पैनी कलम में माहिर मनोज रोज अधिकारियों को आइना दिखाने का काम करते हैं ।

वर्ष 2003 के दशक से पत्रकारिता जगत में उदयमान हुये श्री मनोज दैनिक भास्कर में दो वर्षों तक बतौर रिपोर्टर कार्य किये हैं , वह दो वर्षों तक नवभारत भें भी रिपोर्टिंग कर पत्रकारिता के गुर सीखे हैं। इसके बाद उनकी नई पारी राज एक्सप्रेस समाचार पत्र के साथ हुई। वहां वे ब्यूरोचीफ बनकर पिछले पांच सालों तक कार्यरत रहे हैं। एक दशक के भीतर मनोज पत्रकारिता के सभी आयामों से वाकिफ होकर वर्ष 2013 से निरंतर दैनिक समाचार पत्र " पत्रिका " में बतौर ब्यूरो प्रमुख अपनी सेवाएं दे रहे हैं ।

उल्लेखनीय है कि सीधी के पत्रिका प्रमुख श्री मनोज आज के भीड़भाड़ की पत्रकारिता से अपने को पृथक करके अपना एक अलग अलख जगा रहे हैं । संस्थान की गाइडलाइंस के पदचिन्हों पर पत्रकारिता करने वाले मनोज की लेखनी भी अन्य मित्रों के अपेक्षा जरा हटके है।अक्सर खबरों को लेकर अपनों से भी भले दो चार होना पड़े, किंतु खबरों से कोई समझौता नही करते ....। यह उनकी खासियत कहें या फिर संस्थान की गाइडलाइंस कारण जो भी हो किंतु वह आज एक अच्छे सुलझे हुये पत्रकार हैं।

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