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सीधी : चेहरे चर्चित चार -नेता अफसर विधिक पत्रकार .....

आदरणीय पाठक बंधु
सादर अभिवादन स्वीकार हो।
हम आपके लिए एक ऐसा धारावाहिक लेख प्रस्तुत कर रहे है, जिसमे चार ऐसे लोंगो की जानकारी विशेष है , जिन्होंने विभिन्न अलग अलग क्षेत्रो पर बहुत अच्छा कार्य करके लोंगो का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है, जैसा कि आप हेडिंग से उन कार्यक्षेत्रों के बारे में समझ गए होंगे।
मेरी पूरी कोशिश होगी कि उनलोंगो के जीवन के कुछ रोचक, सुखद, और संघर्ष के बारे में जानकारी इकट्ठा करके लिख सकूं, और सहज शब्दो के माध्यम से उस भाव को आपके सामने प्रकट कर सकूं, जिससे आप किसी भी घटना क्रम को पूर्ण रूप से सही समर्थन दे सकें।
आपका
सचीन्द्र मिश्र
सीधी

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📱 चेहरे चर्चित चार📱
नेता अफसर - विधिक पत्रकार
जिनकी कहानी कलम लिखेगी " समाजसेवी " व्यापारी और वैद्य रचनाकार ।


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👉उमेश तिवारी✍️
समाजसेवी

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आज जिले के ऐसे नेता के बारे में आपको बता रहे है जो सदाबहार है, बाकी नेताओ का आंदोलन, ज्यादातर चुनावी सीजन में होते है, पर ये नेता हर समय जनता के हितों के लेकर हमेशा आंदोलित रहता है, सभा मे जब ये क्रांतिकारी भाषण देना शुरू करते है तो सुनने वाले के दिलो दिमाग में इस तरह असर करते है, की अगर बहता हुआ दरिया हो तो उसे रोक देने का हौसला भर देंते है, और आक्रामक इतना कि प्रशाशन को इनके भाषण के समय जनता संख्या बल से ज्यादा पुलिस बल तैनात करना पड़ता है , और वह हैं कामरेड उमेश तिवारी जिनका जन्म मार्च 1964 में हनुमान गढ़ में हुआ। शिक्षा के क्षेत्र में सीधी जिला मुख्यालय से स्नातक, और कानून की डिग्री प्राप्त की है। खेलकूद में भी अच्छे प्रतिभशाली चैंपियन एथलेटिक्स रहे हैं, जो आज भी फुर्ती देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है।

एलएलबी करने के बाद उमेश तिवारी ने जिला न्यायालय में वकालत शुरू की लेकिन स्वभाव में वकालत कुछ जमी नही, उग्र स्वभाव के तिवारी जिनमे जन सेवा की इच्छा विद्यार्थी समय से ही थी, और नौजवान विद्रोही स्वभाव होने के कारण समाजवादी और साम्यवादी के रास्ते क्रांतिकारी बन गए। युवा अवस्था सन 1981 में प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे अर्जुन सिंह जी का विरोध करने के कारण जेल भी गए, उसी समय कम्युनिष्ट विचारधारा में संपर्क हुआ और कामरेड उमेश तिवारी का उदय हो गया, और कम्युनिष्ट की छात्र संगठन के अध्यक्ष भी रहे, फिर 1987 के समय राज्यपरिषद सदस्य भी रहे, 1993 और 1998 में गोपद बनास से विधानसभा चुनाव भी लड़े। उमेश तिवारी जिले के पूर्व दिग्गज नेता रहे स्व चंद्रप्रताप तिवारी के पारिवारिक पौत्र हैं। जिनके संरक्षण और मार्गदर्शन में उमेश तिवारी की राजनैतिक शुरुआत हुई थी। उमेश तिवारी उन दिनों के राजनैतिक घटनाक्रम को याद करते हुए बताते है कि स्व चंद्रप्रताप तिवारी और जय प्रकाश नारायण में पूर्ण क्रांतिक सोच रही है, जिनके सर्वोदय गतिविधियों के संचालन में वह भी भागीदार बनते थे,
आगे उमेश तिवारी बताते है कि उन लोंगो की सोच थी कि लोकसभा विधान सभा मे सही लोग नही पहुच पाते, इसलिए पहले उम्मीदवार भी जनता तय करे, इसके लिए मतदाता परिषद का गठन किया गया, और उसके परिणाम स्वरूप उमेश तिवारी को पहला 1990 में लोक उम्मीदवार बनाया गया,और दुर्भाग्यवश चंद्रप्रताप तिवारी जी बीमार हो गए और उपचार के दिल्ली चले गए, और उस समय राजनीति की कम समझ के कारण हमने पर्चा वापस ले लिया। और जब बाबू जी वापस लौटे तो एक मीटिंग बुलाई, जिसमे आज सीधी के बर्तमान विधायक केदारनाथ शुक्ल जो स्व बाबू जी को अपना गुरु बताते है वो उस मीटिंग में नही गए, और निर्दलीय अपना पर्चा भर दिए थे, तब बाबू जी ने नाराज होकर कांग्रेस प्रत्यासी कमलेश्वर द्विवेदी को समर्थन दे दिया, और द्विवेदी चुनाव जीत गए।


2010 में उमेश तिवारी ने जिले का एक क्रांतिकारी मोर्चा खड़ा कर दिया टोको रोको ठोको, समाज सेवा में सक्रिय हो गए, जिसमे रीवा से सीधी रेल लाने के लिए पैदल सौ किलोमीटर की यात्रा की, दूसरा सोन नदी में अवैध बालू उत्खनन में रोक लगाने के लिए, बाण सागर से चुरहट तक पैदल यात्रा की, कैमोर पहाड़ में निजी सीमेंट कंपनी के खिलाफ बड़ा आंदोलन किया, प्राकृतिक धरोहर बचाने के लिये उस आंदोलन में उनकी गिरफ्तारी भी हुई, जिसमे एक हप्ते बाद उनकी रिहाई हुई, भुमका मुसामूड़ी में किसानों की अधिग्रहित भूमि के मामले में कंपनी के खिलाफ 2009 से लगातार आंदोलन होते रहते है जो अब भी जारी है, इसी मामले में 34 दिन की भूख हड़ताल भी इन्होंने की है, संजय टाइगर और गुलाबसागर बांध के विस्थापितों को उचित मुआवजा राशि दिलाने, जे पी निगरी तथा अन्य स्थानो के किसानों के हितों के लड़ाई के लिए हमेशा संघर्षरत रहते है।अधिग्रहण के नाम पर जिले के किसानों की छीनी गई भूमियों को बचाने में उमेश तिवारी के संघर्ष की भूमिका महत्वपूर्ण है। यह कहना अतिसंयोक्ति नहीं होगा कि उमेश तिवारी के जबरदस्त संघर्ष की वजह से ही नए सिरे से सीधी जिले के किसानों की जमीनों को अधिग्रहण के नाम पर लूटने की पूंजीपति हिम्मत नहीं कर सके।


उमेश तिवारी के आंदोलनों में महान, बनास और सोन नदी के संगम के ग्राम चन्द्रेह में लगभग 250 एकड़ राजस्व भूमि में आदिवासियों एवं गरीबो को कब्जा कराना और पट्टा दिलाना, इन जमीनों में स्थित बिने गए महुआ फूल को सरहंगों द्वारा जवारिया अधिया लेने का विरोध कर गरीबो को पूर्ण अधिकार दिलाना । झोपड़ियों का पट्टा देने हेतु चन्द्रेह से सीधी तक का पैदल मार्च आंदोलन आज भी गरीबो, ग्रमीणों पर चर्चा में है। आपको याद होगा वो समय जब अन्ना हजारे भी सीधी आगये थे, उनको समर्थन देने वाले उमेश तिवारी ही थे जिनकी डोर पकड़ कर वो आये। आज के समय सीधी की हर गलियों में अफसर साही और नौकरशाही के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले नेता उमेश तिवारी का संघर्ष निरंतर जारी ही है, जिले का ऐसा कोई थाना नहीं जहां आंदोलन में उनके खिलाफ एफआईआर न हुई हो ।



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✍️ रमाकांत मिश्र✍️
S.D.O
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जिद जुनून और जज्बे ने जिस जिंदगी को जीवनदान दिया जिद उस व्यक्ति की जिसने प्रत्यारोपित अंगों से जीवन जीने का संकल्प लिया। जुनून उनका जिसने अपने वहन के संकल्प को पूरा करने का साहस दिखाया और आज अंगप्रत्यारोपण से इन साहब के लिये मील का पत्थर साबित हुआ। जी हां हम बात कर रहे हैं सीधी जिले के लोक निर्माण विभाग में बतौर एसडीओ पदस्थ एक अधिकारी आरके मिश्रा की जिनका जन्म 28 फरवरी 1970 को सीधी जिले के कोस्टा में हुआ। इनके दादाजी स्वर्गीय इंद्र दत्त राम मिश्रा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे हैं वहीं पिताजी कृषि विभाग में यूडीसी के पद पर कार्यरत रहते हुए 2004 में सेवानिवृत्त हो गए।
कुछ अलग कर दिखाने के जुनूनी आरके मिश्रा की हायर सेकेंडरी तक शिक्षा दीक्षा सीधी जिले में ही हुई। इसके बाद वे डिप्लोमा सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए उज्जैन चले गए। इसके बाद 1993 में सिविल इंजीनियरिंग में बैचलर की डिग्री लेने के बाद उन्होंने इकोनॉमिक्स से मास्टर ऑफ आर्ट किया। आरके डिप्लोमा सिविल इंजीनियरिंग करने के पश्चात भागीरथ इंजीनियरिंग लिमिटेड कोचीन में 1990 तक बतौर ट्रेनी इंजीनियर के रूप में कार्य किया। कार्य करने के पश्चात वर्ष 1990 में लोक निर्माण विभाग में दैनिक वेतन पर उपयंत्री के रूप में उन्होंने कार्य करना प्रारंभ किया। इसके बाद 2003-04 के दौरान वह प्रतिनियुक्ति पर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना भोपाल चले गए। 7 वर्ष पीएमजीएसवाई में बिताने के बाद उनकी फिर से प्रतिनियुक्ति हुई और वे प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से मध्य प्रदेश रोड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन में चले गए। एवं वर्ष 2015 में वह अपने मूल विभाग पी डब्ल्यू डी में फिर से बतौर सब इंजीनियर लौट आए। वर्तमान में वे विभाग में एसडीओ के पद पर पदस्थ है।

एक वाक्या आपको बताते चलें कि आरके को अचानक वर्ष 2006 में बीमारी ने घेर लिया और उन्हें चेचक हो गया।जिस कारण भोपाल के हॉस्पिटल में उन्हें एडमिट होना पड़ा लेकिन इलाज के दौरान उनकी किडनी डैमेज हो गई। इस बीच इलाज के लिए उनके पिताजी ने अपना सीधी में बना हुआ घर भी बेच दिया क्योंकि उन दिनों किडनी का इलाज आज की तुलना में दो गुने से ज़्यादा खर्च था।
इसके बाद उनका अंतिम विकल्प केवल ट्रांसप्लांट था। आरके की बड़ी बहन राजकुमारी ने उन्हे अपनी किडनी देकर जीवनदान सा दे दिया।
अपने हर छोटे बड़े कार्य को पूजा समझने वाले इस इंजीनियर ने पहली प्राथमिकता नौकरी को दिया है उसके पश्चात अन्य सब कुछ....


पीडब्ल्यूडी इंजीनियर रमाकांत मिश्र का जज्बा वाकई साहस और सौम्य से भरा हुआ है , छात्रजीवन से अब तक निरंतर संघर्ष मय जीवन व्यतीत करना इनकी जीवनशैली में सुमार हो चुका है , कार्य को पूजा मानने वाले इस इंजीनियर ने कभी अपने उसूलों से समझौता नही किया कभी किसी भी ताकत के सामने नतमस्तक नही हुआ , सम्मान की जिंदगी जीने के आदी इस इंजीनियर की कहानी भी बड़ी अजब है लेकिन हां सम्मान के साथ आपके समक्ष सबकुछ न्यौछावर करने से भी एक कदम पीछे नही हटेंगें ।



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👉 आनंद पाण्डेय ✍️
वरिष्ठ अधिवक्ता

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एक ऐसी उदारवादी सोच जो पूंजीवाद व सामंतवाद के विपरीत हो मानवीय चेहरे' के साथ न्याय करने की दिशा में कृत संकल्पित हो , वकालत की जाती हो यानी की बेहतर जन कल्याण के साथ न्यायपूर्ण नियम-कायदों और शोषितों को न्याय दिलाने का जिसके सिर पर जुनून सवार हो ऐसे सीधी जिला अधिवक्ता संघ केवरिष्ठ सदस्य एडवोकेट आनंद पाण्डेय का जन्म 15 /06/1968 को चुरहट के समीपी गाँव तिवरिगवां ( वूसी ) मे हुआ था इनकी प्राथमिक शिक्षा गृह ग्राम में हुई , मिडिल व हायर सेकण्ड्री चुरहट हायरसेकंड्री से करने के उपरांत संजय गांधी स्मृति शासकीय महाविद्यालय सीधी से स्नातक एवं विधि स्नातक की पढ़ाई करके वकालत का लाइसेंस प्राप्त कर वर्ष 1991 मे उस दौर के क्रांतिकारी व दमदार व्यक्तित्व एडवोकेट स्वर्गीय उमाशंकर मिश्र जी के जूनियर के रूप में वकालत का श्री गणेण किया ।

सिविल क्रिमिनल दोनों तरह के मुकदमों को लडने में आप पीछे नहीं हटते प्रकरणों मे मेहनत करके लड़ना तथा पक्षकार को न्याय दिलाना ही पहला लक्ष्य रहता है, कालेज के दिनों में छात्र राजनीति में भाग लेने के कारण दिलो दिमाग में नेतागिरी का रंग स्वाभाविक है और उसी अनुरूप श्री आनंद वर्ष 1989 मे कामरेड उमेश तिवारी व बद्री मिश्रा के साथ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता लेकर कामरेड हो गए तथा रीवा संभाग मे भाकपा का नेतृत्व विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम एवं विश्वभंर पाण्डेय जी द्वारा किया जा रहा था उन्ही के अगुआई में सीधी जिले में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वैनर तले सक्रिय भूमिका में रहने लगे! वर्ष 2001 में जिला अधिवक्ता संघ के सचिव के दायित्व का निर्वहन आपने किया है वर्ष 2002 से 2018 तक आप भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के जिला सचिव के रूप में अपनी पार्टी के विस्तार करने में लगे रहे लेकिन इसमें सफलता हाथ नहीं लगी फिर भी पार्टी को जीवित रखने में श्री पाण्डेय, जी जान से लगे रहे तथा चुरहट विधानसभा से वर्ष 2013 एवं 2018 मे बतौर पार्टी प्रत्याशी चुनाव लड़ चुके हैं आखिर पार्टी तो चुनाव लड़ने एवं
वर्तमान में श्री पाण्डेय भाकपा के राज्य परिषद सदस्य के दायित्व में है! कुल मिलाकर अगर यह कहा जाय कि आनंद जी वकालत के साथ साथ समाज के शोषित पीड़ित को न्याय दिलाने तथा पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाने में लगे हुए है ,विल्कुल अतिशयोक्ति नही होगा ।


एडवोकेट श्री आनंद पिछले दो दशक से गरीबों को न्याय दिलाने की दिशा में कभी पीछे नही मुड़े ,जातिगत राजनीति से परे हमेशा शोषितों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर न्याय की लड़ाई लड़ने वाले आनंद अफसरशाही का अक्सर विरोध वुलंद करते हैं । हंसमुख मिलनसार हास्य के धनी श्री आनंद से लोग मिलकर कभी वोरियत का एहसास नही करते ।


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👉राहुल वर्मा✍️
युवा पत्रकार

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आज हम बात कर रहे हैं जिले के एक ऐसे युवा पत्रकार की जिसने अपने पारिवारिक दायित्वों और व्यापारिक संघर्षों को साथ लेकर जीवन के सीढ़ियों की ऊंचाइयों को धीरे धीरे नए आयाम दे रहे है। जी हां हम बात कर रहे हैं जिले के वरिष्ठ फोटोग्राफर स्वर्गीय हीरा काकू के पोते राहुल वर्मा की। राहुल का जन्म 3 मार्च 1991 को सीधी जिले में हुआ। जिनकी प्रारंभिक शिक्षा सीधी में ही हुई। बाद में उन्होंने आगे की पढ़ाई भी सीधी में ही जारी रखी। राहुल बाहर तो जाना चाहते थे लेकिन उनके जीवन की जंजीरों और पारिवारिक, व्यापारिक कारणों ने उन्हें जाने ना दिया। राहुल ने आगे की पढ़ाई सीधी में ही जारी रखी और Bcom. DCA, MSW, PGDCA, COPA, MBA जैसी तमाम डिग्रियां हासिल कर ली।

राहुल 10 बर्ष की उम्र से ही अपने बब्बा जी यानी कि सीधी के मशहूर प्रेस फोटोग्राफर रहे हीरा काकू के साथ काम में जुट गए थे। अपने बाबा जी के जमाने में जब डिजिटल युग नही था तबसे उनके साथ कार्यों की बारीकी को देखने और करने के लिए राहुल बचपन से ही जुनूनी थे, जिसका परिणाम उन्हें आगे चलकर मिला।प्रतिष्टित व्यवसायी के रूप में ब्राइट कलर लैब के नाम से व्यवसाय का संचालन अत्याधुनिक तरीके से करते है। 2009 से राहुल ने पत्रकारिता की ओर कदम रखा। वे 13 वर्षों से श्रमजीवी पत्रकार संघ के सदस्य हैं। राहुल पूर्व में श्रमजीवी पत्रकार संघ की युवा शाखा के जिलाध्यक्ष एवं जनभागीदारी समिति के सदस्य रह चुके हैं। और वर्तमान में श्रमजीवी पत्रकार संघ के जिला सचिव हैं। एक साथ कई कार्यों को करने वाले राहुल में अलग ही कार्यक्षमता है। राहुल वर्तमान में मानवाधिकार एसोसिएशन के जिला महासचिव व सीधी विधायक प्रतिनिधि एवं भाजपा के सक्रिय सदस्य व जिले के सह मीडिया प्रभारी भी है।

राहुल सामाजिक कार्यों की गतिविधियों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं। लोगों को आवश्यकता पड़ने पर मदद करते हैं एवं दूसरों को भी रक्तदान करने के लिए प्रेरित करते हैं। पिछले वर्ष 2020 और वर्तमान समय में भी चल रही कोरोना जैसी वैश्विक बीमारी में भी राहुल अपनी मां उत्तरा के साथ लगातार जरूरतमंदों की मदद करते रहते हैं। वास्तव में पत्रकारिता जगत में छायाकार की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण होती है खासतौर से डिजिटल युग के पहले जब प्रिंट मीडिया में फोटो पत्रकारिता महत्वपूर्ण होती थी तब राहुल के बाबा श्री के जल्बे भी हम सब पत्रकारों के लिये ... खैर दूसरी पीढी के इस सूरज ने डिजिटल के क्षेत्र में अपनी एक अलग अलख जगाने में कोई कसर नही छोडी़ है, हीरा काकू के पदचिन्हों मे युवा पत्रकार राहुल फलफूल रहा है ।

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