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Home सियासत मंचों से हो रही कार्यवाहियों के खुले राज , तीन दशक पुरानी नरोन्हा की पुस्तक "ए टेल टोल्ड बाय एन इडियट" आई याद ...?

मंचों से हो रही कार्यवाहियों के खुले राज , तीन दशक पुरानी नरोन्हा की पुस्तक "ए टेल टोल्ड बाय एन इडियट" आई याद ...?

ऐसा माना जाता है की नेता दोहरे चरित्र के होते हैं, कभी चिट तो कभी पट, चिट और पट दोनो ही चाहते हैं, यूं कंहू कि वह घर जले मुवारक बात ..यह घर जले मुवारक बात , अतिशयोक्ति नही होगा। लेकिन मतदाता का चरित्र साफ होता है, पिछले विधानसभा चुनावों में जनता ने अपना चरित्र साफ कर दिया था, भला हो गांधी जी और दिग्विजय सिंह जी का, जो बनी हुई सरकार हाथ से निकल गई, पिछले कुछ महीने पहले स्थानीय निकाय के चुनाव संपन्न हुए थे, जिसमे विंध्य और चंबल में भाजपा को करारी हार का मुंह देखना पड़ा था, ग्वालियर, जबलपुर, छिंदवाड़ा, कटनी, और रीवा सिंगरौली नगर निगम में भाजपा नगर सरकार नही बना पाई, सतना में बसपा की बदौलत वामुश्किल से भाजपा सीट बचा पाई, अब विधानसभा सीटों का गणित समझे तो ग्वालियर चंबल, महाकौशल और विंध्य मिलाकर लगभग 110 सीट आती हैं, नगर निगम के परिणामों की आहट और तरंग ही आगे जाकर लहर बनने वाली है, जिसका अंदाजा संघ और संघटन दोनो को हो चुका है, और समग्र में इस स्थिति का जिम्मेदार शिवराज सिंह चौहान को ही माना जा रहा है, जिसकी घबराहट उनके हाव भाव, और कृत्यों में आसानी से देखी जा सकती है ।

कहते हैं इतिहास के पन्नो में भविष्य का लेख लिखा होता है, विजयाराजे सिंधिया ने 1957 में कांग्रेस से अपनी राजनीतिक पारी शुरू की थी। वह गुना लोकसभा सीट से सांसद चुनी गईं, लेकिन कांग्रेस में 10 साल बिताने के बाद पार्टी से उनका मोहभंग हो गया सन 1967 में डीपी मिश्र की सरकार के दौरान पर्याप्त सम्मान न मिलने के कारण और डीपी मिश्र के व्यंग बाणों से आहत होकर उन्होंने पार्टी छोड़ दी थी, 1967 में प्रदेश में बनी पहली गैर-कांग्रेसी सरकार भी राजमाता के प्रयासों का ही नतीजा था, द्वारिका प्रसाद मिश्र से अपने अपमान का बदला लेने के लिए उन्होंने जनसंघ, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और कांग्रेस के दलबदलू विधायकों को इकट्ठा किया और संयुक्त विधायक दल का गठन किया, 19 महीने चली इस सरकार के मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह थे, लेकिन कर्ता-धर्ता राजमाता थीं,
गोविंद नारायण सिंह को मुख्यमंत्री राजमाता ने ही बनवाया था और वे सरकारी कामकाज में लगातार हस्तक्षेप भी करती थीं। इसके लिए उन्होंने सरदार संभाजी आंग्रे को जरिया बना रखा था सरदार आंग्रे उनके व्यक्तिगत सहयोगी थे, जो आगे चलकर राज्यसभा के सदस्य भी बने,
एमएन बुच की किताब 'व्हेन द हार्वेस्ट मून इज ब्लू' की मानें तो संविद सरकार में राजमाता कोटे से बने मंत्री बृजलाल वर्मा ने एक बार लिफ्ट इरिगेशन के लिए पम्प सेट खरीदने का प्रस्ताव रखा, जिसके लिए मुख्यमंत्री का अनुमोदन आवश्यक था, ऐसा इसलिए कि खरीदी प्रक्रिया में स्थापित मापदण्डों को बायपास किया गया था, प्रदेश तत्कालीन मुख्य सचिव आरसीपीवी नरोन्हा और सिंचाई सचिव एसबी लाल ने इसका पुरजोर विरोध किया था, खास बात यह ही कि मुख्यमंत्री के पास फाइल पहुंची, तो उन्होंने लिखा कि, -'मैं अपने मुख्य सचिव व सिंचाई सचिव की बात से सहमत हूं, क्योंकि यह प्रस्ताव अनैतिक है, इसे मंजूर नहीं किया जा सकता, लेकिन मैं अपने सिंचाई मंत्री की मजबूरी को समझ सकता हूं, चूंकि इस मामले में उन्होंने 20 हज़ार रुपए की मूर्खतापूर्ण रिश्वत चेक द्वारा ली है, इसलिए ऐसी सिचुएशन में यह प्रस्ताव स्वीकार किया जाता है ।

19 महीने के शासनकाल में ही गोविंद नारायण सिंह, राजमाता के हस्ताक्षेप से इतने खिन्न हो गए कि एक बार उन्होंने उनकी भेजी फाइल पर ऐसी की तैसी लिख दिया, राजमाता संयुक्त विधायक दल की नेता और करेरा की विधायक थीं, सरदार आंग्रे लगातार फोन पर हर हाईनेस राजमाता के नाम से मुख्यमंत्री को ट्रांसफर और नियुक्तियों के निर्देश देते थे, इन निर्देशों को नहीं मानने की कोई गुंजाइश नहीं होती थी, शुरुआत में तो गोविंद नारायण सिंह राजमाता के सभी निर्देश मान लेते थे, लेकिन डेढ़ साल पूरे होते-होते वे इससे तंग आ गए, इसी दौरान राजमाता की अनुशंसा वाली एक फाइल उनके पास आई तो उन्होंने उस पर अपना कमेंट लिखा- ऐसी की तैसी...

मुख्यमंत्री के इस कमेंट के बाद बवाल खड़ा हो गया, राजमाता के समर्थकों ने हल्ला मचाना शुरू कर दिया कि मुख्यमंत्री ने उनके लिए गाली लिख दी, गोविंद नारायण सिंह पढ़े-लिखे राजनेता थे, उनसे जब इस बारे में सवाल किया गया तो मुख्यमंत्री ने कहा कि ऐसी की तैसी का अंग्रेजी मतलब " एज प्रपोज्ड " होता है, दूसरे शब्दों में कहें तो जैसा प्रस्तावित किया गया,
आरवीपी नरोन्हा उस समय मुख्य सचिव थे, उस दौरान के प्रशासनिक अनुभवों को लेकर उन्होंने एक किताब लिखी थी, जिसका नाम था, "ए टेल टोल्ड बाय एन इडियट" जिसमे राजनीतिक कुंठा को किस तरह से प्रशासनिक अधिकारियों पर उतारा जाता था, जनता के कार्यक्रमों में कैसे अफसरों को बेइज्जत किया जाता था, और कार्यवाहियां की जाती थी, इस तरह के कई किस्से आम हैं ।

आज लगभग 30 साल बाद एक बार फिर से वही स्थिति देखने को मिल रही है, जिसमे ज्योतिरादित्य सिंधिया कोटे से बने मंत्रियों के भ्रष्टाचार के किस्से लगातार आम हो रहे हैं, उन्ही के एक मंत्री शिवराज सिंह चौहान के विश्वस्त माने जाने वाले मुख्य सचिव पर सार्वजनिक रूप से व्यक्तिगत टिप्पणी कर चुके हैं, लेकिन सरकार चलाने की मजबूरी कहे या सत्ता का मोह, इन सब पर चुप्पी साध ली गई है, ट्रांसफर पोस्टिंग के बाद अब निलंबन बहाली का खेल भी शुरू हो चुका है, जिसको आसानी से देखा जा सकता है , ये तो तंय है की मुख्यमंत्री का अपनी कैबिनेट के सहयोगियों पर कोई नियंत्रण नहीं रह गया है, जमीनी हकीहत को देखना हो तो सीएम हेल्पलाइन पोर्टल पर दर्ज शिकायतों की संख्या से प्रदेश में सुशाशन का आंकलन लगाया जा सकता है, संघ और इंटेलिजेंस का सर्वे भी इस सरकार के खिलाफ है ...? और इस पूरी आपाधापी में कोई पिस रहा है तो कोई मजे कर रहा है , सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के मामले में सरकार सख्त होने का ढिंढोरा पीट रही है जबकि सच्चाई कुछ और है सस्ती लोकप्रियता और राजनीतिक कुंठा के कारण समाज का एक खास तबका आज परेशान है , जिसका खामियाजा आने वाले समय पर सरकार को उठाना पड़ेगा ।

सचीन्द्र मिश्र

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