जबलपुर(ईन्यूज़ एमपी): मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार की आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) आरक्षण नीति को चुनौती देने वाले मामले में सरकार से जवाब मांगा है। याचिका में दावा किया गया है कि सरकार की यह नीति संविधान के अनुच्छेद 14, 15(6), और 16(6) के प्रावधानों का उल्लंघन करती है। यह याचिका एडवोकेट यूनियन फॉर डेमोक्रेसी एंड सोशल जस्टिस की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और विनायक प्रसाद शाह द्वारा दायर की गई थी। आरक्षित वर्ग को EWS सर्टिफिकेट से वंचित करने पर सवाल: याचिकाकर्ताओं ने अदालत में तर्क दिया कि मध्य प्रदेश सरकार केवल सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को EWS प्रमाण पत्र जारी कर रही है, जबकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, और अन्य पिछड़ा वर्ग के गरीब उम्मीदवारों को इस लाभ से वंचित रखा जा रहा है। याचिका में कहा गया कि यह नीति संविधान के अनुच्छेद 15(6) और 16(6) के खिलाफ है, जिसमें सभी वर्गों के गरीबों के लिए EWS आरक्षण का प्रावधान है। संविधान के खिलाफ सरकार की नीति: याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि EWS प्रमाण पत्र के लिए जारी फॉर्म में जाति का उल्लेख किया जा रहा है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है, जो समानता के अधिकार की बात करता है। उन्होंने हाईकोर्ट से हस्तक्षेप की मांग करते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया। कोर्ट की टिप्पणी: सुनवाई के दौरान जस्टिस संजीव कुमार सचदेवा ने याचिकाकर्ता के वकील से यह स्पष्ट करने को कहा कि क्या वे आरक्षित वर्ग की ओर से पैरवी कर रहे हैं या अनारक्षित वर्ग की ओर से। याचिकाकर्ताओं ने उत्तर दिया कि वे केवल EWS कैटेगरी से आरक्षित वर्ग के गरीब उम्मीदवारों के लिए प्रमाण पत्र की मांग कर रहे हैं। सरकार की ओर से प्रतिक्रिया: सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि EWS आरक्षण के संबंध में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ पहले ही फैसला दे चुकी है। हालांकि, याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का वह फैसला संविधान के 103वें संशोधन की वैधता से जुड़ा था, लेकिन इस याचिका में उठाए गए मुद्दों पर कोई विचार नहीं किया गया है। अदालत ने सरकार से पूछा कि आरक्षित वर्ग के गरीबों को EWS प्रमाण पत्र क्यों नहीं दिया जा रहा है, जिसके जवाब में सरकार ने अधिक समय मांगा। अब इस मामले की अगली सुनवाई 4 नवंबर 2023 को होगी। हाईकोर्ट ने सरकार को अपना पक्ष स्पष्ट करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है। याचिकाकर्ताओं ने इस मामले के साथ अन्य चार याचिकाओं को भी जोड़ने का अनुरोध किया, हालांकि कोर्ट ने इन याचिकाओं की अलग से सुनवाई का निर्णय लिया।