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सीधी : चेहरे चर्चित चार - नेता अफसर विधिक पत्रकार ...

आदरणीय पाठक बंधु
सादर अभिवादन स्वीकार हो।
हम आपके लिए एक ऐसा धारावाहिक लेख प्रस्तुत कर रहे है, जिसमे चार ऐसे लोंगो की जानकारी विशेष है , जिन्होंने विभिन्न अलग अलग क्षेत्रो पर बहुत अच्छा कार्य करके लोंगो का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है, जैसा कि आप हेडिंग से उन कार्यक्षेत्रों के बारे में समझ गए होंगे।
मेरी पूरी कोशिश होगी कि उनलोंगो के जीवन के कुछ रोचक, सुखद, और संघर्ष के बारे में जानकारी इकट्ठा करके लिख सकूं, और सहज शब्दो के माध्यम से उस भाव को आपके सामने प्रकट कर सकूं, जिससे आप किसी भी घटना क्रम को पूर्ण रूप से सही समर्थन दे सकें।
आपका
सचीन्द्र मिश्र
सीधी

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📱 चेहरे चर्चित चार📱
नेता अफसर - विधिक पत्रकार
जिनकी कहानी कलम लिखेगी " समाजसेवी " व्यापारी और वैद्य रचनाकार ।


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👉 चिंतामणि तिवारी ✍️
पूर्व अध्यक्ष

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1979 में मझौली में देश के बड़े दिग्गज नेता स्व. अर्जुन सिंह जी की सभा चल रही थी, उस सभा का संचालन सीधी का एक युवा अधिवक्ता बड़े ही ओजस्वी शब्दो से किये जा रहा था, जो मंच पर बैठे प्रतिभा के पारखी अर्जुन सिंह जी को बरबस ही प्रभावित कर रहा था। कार्यक्रम समाप्त होने पर अर्जुन सिंह द्वारा उस युवा का परिचय पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि अभी राजनीति से कोई मतलब नहीं सिर्फ कार्यक्रम संचालन के लिए आये थे। वहीं पर अर्जुन सिंह जी ने पार्टी में शामिल होने का प्रस्ताव कर दिया, और 5 नवम्बर 1979 को उस युवा की पार्टी ज्वाइन होती है और कुछ ही घंटों में वह मझौली ब्लॉक कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष घोषित हो जाता है। वह नेता थे चिंतामणि तिवारी। श्री तिवारी का जन्म ताला में 25 सितंबर 1946 को हुआ, हायर सेकंड्री तक की पढ़ाई तिवारी ने मझौली से की, फिर उच्च शिक्षा, B.com, M.com, और LLB की पढ़ाई रीवा के दरबार महाविद्यालय यानी कि आज के टीआरएस कॉलेज से की। प्रतिभा और योग्यता के धनी तिवारी को उस समय दो सरकारी नौकरी रेलवे और स्टेट की मिली, लेकिन तिवारी की रुचि और किस्मत तो कही और खींच रही थी, जिससे तिवारी ने नौकरी को ज्वाइन ही नही किया।

1972 से 1980 तक तिवारी ने जिला मुख्यालय में वकालत भी की, इसी दौरान कांग्रेस के बड़े नेता का साथ मिल गया, और राजनीति में सक्रिय हो गए, फिर 1983 में मझौली जनपद अध्यक्ष निर्वाचित हो गए। उन दिनों पंचायत के अध्यक्ष पद की चयन की प्रक्रिया अलग थी। निर्वाचित जनपद सदस्य ही जिलापंचायत अध्यक्ष का चुनाव करते थे। इस तरह तिवारी भी जिलापंचायत के मतदाता थे। अध्यक्षी के लिए तो मन मे कोई ख्याल नहीं था, और जिले में अन्य अन्य लोग अपनी अपनी दमदार उम्मीदवारी पेश कर रहे थे। वोटिंग के दिन तिवारी भी अपने घर से जिला मुख्यालय की ओर प्रस्थान किये ही थे कि आधे रास्ते मे सीधी तरफ से तेजी से एक जीप आकर उनके पास रुकी, और उसमें बैठा आदमी बताया कि आपको मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह जी ने बुलाया है। तिवारी अब उस जीप में सवार होकर जा तो अपने गंतव्य सीधी ही रहे थे, पर उनके मन मे अनेक खयाल थे। तिवारी जी यह तो नही जान पा रहे थे कि ये यात्रा आज बहुत दूर तक चलने वाली है।
कुछ ही समय मे तिवारी तत्कालिन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह जी के सामने थे, उस समय सिवाय तिवारी के सारे लोग पहले पहुंच चुके थे। तभी अर्जुन सिंह जी ने दो पहले एक ही तरह के दो पूर्ण भरे हुए फॉर्म निकाले और उस पर खुद हस्ताक्षर करते हुए तिवारी को दस्तख़त करने के लिए बोले, तब भी तिवारी को नही पता था कागज क्या है, लेकिन जब दस्तख़त करते हुए तिवारी ने कागज को पढ़ा तो समझ गए, कि जिस रेस का वो खुद का हिस्सेदार नही मानते थे, उस रेस के तो विजेता वही हैं। वो फॉर्म था जिला पंचायत अध्यक्ष का और समर्थक प्रस्तावक स्वयं मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह जी थे।
अब भला अर्जुन के छोड़े गए ब्रम्हास्त्र को काट देने की विद्या किसके पास थी, इस तरह तिवारी जी निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्ष घोषित हो गए।
अब धीरे धीरे तिवारी अर्जुन सिंह के सबसे खास और प्रिय होते चले गए, फिर 1991 में तिवारी जी जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष चुन लिए गए। संगठन का वो दौर स्वर्णिम गिना जाता है, तिवारी ने संगठन में अनुशासन और कसावट ला दी। 1993 में जब चुरहट सीट पर अर्जुन सिंह जी को प्रत्यासी के रूप में अन्य विकल्प चुनना पड़ा तो तिवारी जी को प्रत्यासी बना दिया, खैर उस चुनाव में पता नही कैसे अर्जुन सिंह जी और तिवारी को धोखा हो गया, और परिणाम अनुकूल नहीं रहा।
लेकिन तिवारी के भरोसे में कोई कमी नही आई, इसीलिए जब एक दौर आया और तिवारी कांग्रेस बनी तो उसके भी अध्यक्ष तिवारी ही बने, और उनके पसंद पर अर्जुन सिंह जी ने लोकसभा प्रत्यासी तिलकराज को बनाया, जो जीत भी गए। फिर 1998 का चुनाव तिवारी ने गोपद बनास से निर्दलीय लड़े, लेकिन भाग्य ने यहां भी साथ नही दिया।


अर्जुन सिंह जी के सबसे खास सिपहसालार रहे तिवारी जी आज भी उनको याद करते हुए कहते है कि उन्होंने सफल राजनीति के दो सूत्र बताए थे कि किसी भी अधिकारी के सामने झुकना नही है, और किसी से पैसे की लेनदेन नही करना है।यही कारण है कि आज भी उनके बताए पद चिन्हों पर ही चल रहा हूँ। लेकिन श्री तिवारी आज आधुनिक राजनीति में आज अनफिट हैं ।


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👉 अनिल तिवारी ✍️
C.E.O.
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बचपन से लेकर करीव 30 वर्षों तक आदिवासियों के बीच जीवन यापन करने वाला एक ऐसा अधिकारी जो आज भी आदिवासी प्रेम से नही उभर पा रहा हैं , वह हैं जनपद पंचायत सिहावल के मुख्य कार्यपालन अधिकारी अनिल तिवारी जिनका जन्म 1 नवंबर 1962 को रीवा जिले के खरहरी गांव में हुआ है, किंतु सम्पूर्ण शीक्षादीक्षा छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर जिले में हुई है । हिस्ट्री से एमए की उपाधि अर्जित करने वाले श्री तिवारी के पिता पेशे से शिक्षक थे जिनकी पदस्थापना उस वक्त बस्तर थी।पढ़ लिखकर तैयार 10 जून 1980 को सीईओ श्री तिवारी भी पिता की राह पर चल पड़े और वह भी वंही शिक्षक बन गये,किंतु श्री तिवारी की प्रतिभा वहाँ रुकी नही वह केवल दस दिनों तक ही शिक्षकीय पेशा में रहे हैं। तीन अन्य नौकरियां छोड़ने के उपरांत श्री तिवारी मध्य प्रदेश पीएससी की परीक्षा में सम्मिलित हुए जहां उनका चयन CEO पद पर हो गया लेकिन पहली पदस्थापना मध्यप्रदेश के सतना जिले के सोहावल में हुई ।


आदिवासी प्रेम से ओतप्रोत होकर पिता के संग छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में करीब 30 सालों तक जीवन यापन करने वाले मुख्य कार्यपालन अधिकारी अनिल तिवारी राज्य विभाजन की वजह से वह मध्यप्रदेश के कैडर में भले नौकरी कर रहे हैं लेकिन उनका आज भी बस्तर के आदिवासियों के प्रति बचपन प्रेम बरकरार है। मध्य प्रदेश के पन्ना ,होशंगाबाद ,राघोगढ़ व शहडोल में अपनी सेवाएं देने के बाद फिर दूसरी पारी 2012 में सतना जिले में बतौर सीईओ श्री तिवारी सेवारत रहे हैं। 2014 में वह सीधी जिले की जनपद पंचायत मझौली में भी पदस्थ रहे हैं जो 2014 से 2017 तक निरंतर मझौली में पदस्थ रहते हुए स्वच्छता अभियान व ग्रामीण विकास के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किये हैं। वर्ष 2017 में श्री तिवारी की पदस्थापना शिवपुरी जिले के पोहरी में हुई थी , जिन्होंने वहां के उपरांत 2019 में फिर तीसरी बार सतना जिले के उचेहरा में अपनी सेवाएं देने के बाद श्री तिवारी एक बार फिर अक्टूबर 2020 से सीधी जिले के सिहावल में पदस्थ होकर ग्रामीण विकास विभाग की योजनाओं के सफल क्रियान्वयन के साथ साथ वैश्विक महामारी कोरोना से निजात दिलाने में संघर्षरत हैं ।

CEO श्री तिवारी खेलकूद के क्षेत्र में बालीवाल ,फुटबॉल व कबड्डी जैसी गतिविधियों में अग्रणी खिलाड़ी रहे हैं वह छत्तीसगढ़ के बस्तर में कई खिताब जीते हैं। संगीत प्रेमी श्री तिवारी साहित्यि और धर्मग्रंथों के अच्छे जानकर हैं । शारीरीक दक्षता के साथ साथ सामान्य रहन सहन ग्रामीण परिवेश के साथ जीवनशैली व्यतीत करने वाले इस अधिकारी का आदिवासी प्रेम आज भी अनवरत है। 1998 तक बस्तर की बस्ती में पढ़े लिखे अनिल तिवारी सागभाजी के नाम से विख्यात रहे हैं कारण कि खानपान के मामले में शुद्ध शाकाहारी विंध्य के व्यंजन उनकी पहली पसंद है , किंतु बचपन बचपन होता है और आदिवासियों , गरीबों की गरीबी से सीधा तालुकात होने के नाते वह आज भी गरीबों की सेवा में मन से समर्पित हैं ।


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👉 मदन प्रताप सिंह ✍️
एडवोकेट
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जिला अधिवक्ता संघ सीधी के सीनियर एडवोकेट मदन प्रताप सिंह का जन्म 01/08/1957 को युवराज भवन रीवा जहाँ अब सैनिक स्कूल है हुआ था, आपने MA और LLB की पढाई ठाकुर रणमत सिंह कालेज से करने के बाद वर्ष 1986 -87 मे कुछ समय तक डालडा फैक्ट्री में नौकरी करने लगे लेकिन वहाँ जमा नहीं तो उसे छोड़कर वर्ष 1989 में विधि व्यवसाय से जुड़ कर वकालत करने लगे , और फिर इसी क्षेत्र में रम गए, वकील के तौर पर आपकी छवि साफ स्वच्छ व अपने पक्षकार के लिए मुकदमे की पैरवी तैयारी के साथ पूरी तन्मयता से करते हैं। मदन प्रताप जी वर्ष 2003 से 2009 तक लगातार सीधी शहडोल जिले मे आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो ( EOW) के विशेष लोक अभियोजक के रूप में पैरवी करते हुए सीधी के तत्कालीन सी एम एच ओ डाक्टर राजेश सिंह एवं स्टोर कीपर को सजा कराने में सफल रहे है। वहीं सिचाई विभाग के आर्थिक घोटाले में लेखापाल को दंडित कराने में अपनी निष्पक्ष भूमिका अदा किया था।

एडवोकेट श्री मदन वर्ष 2015 से 2018 तक शासकीय अधिवक्ता के दायित्व में रहते हुए आपने दक्षता के साथ प्रकरणों में पैरवी किया है इस दौरान आपने कोर्ट एवं प्रशासन के बीच समन्वय स्थापित करने में सफल रहे हैं। आप काग्रेस पार्टी की विचारधारा से जुड़े हैं लेकिन सक्रिय राजनीति में भाग लेने मे बहुत रूचि नहीं रखते।वे अपने संबन्धों को ज्यादा महत्व देते हैं इस कारण कई दलो मे आपके अच्छे रिश्ते है और इसी विशेषता के चलते वे पूर्व भाजपा सरकार में जी पी के पद पर रहे हैं । बहरहाल मदन प्रताप सिंह एक अच्छे वकील के साथ साथ समाज में अपनी बेहतर उपस्थिति के लिए जाने जाते हैं ।


वास्तव में मदन जी दलगत राजनीति से परे हैं सर्वदलीय की भूमिका में खडे़ वह अक्सर हर किसी के साथ मधुर सम्बंधों को जीते हैं और निभाते भी हैं। यही कारण है कि अधिवक्ताओं की जमात में वह निर्विवाद हैं ।



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👉रामविहारी पाण्डेय✍️
वरिष्ठ पत्रकार
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वर्ष 2014 से दो-तीन वर्ष तक एक ज्वलंत मुद्दे को एक पत्रकार लगातार प्रमुखता से सुर्खियों में रखा था। जिसके कारण बाद में विपक्ष पार्टी ने बड़ा आंदोलन भी किया। वो निर्भीक दबंग वाक्य लिखने वाले पत्रकार थे रामबिहारी पांडेय। जिनका जन्म रामपुर नैकिन क्षेत्र के रैदुअरिया में 1971 में हुआ।
स्नातक की शिक्षा इन्होंने रीवा से प्राप्त की।इन्होंने पत्रकारिता का श्री गणेश वर्ष 1996 में आंचलिक पत्रकार के रूप में की। जिसके दौरान इन्होंने बड़े समाचार पत्र दैनिक जागरण और नवभारत में पत्रकारिता की है। 2007 मे वह सहायक ब्यूरो दैनिक जागरण और फिर2009 में सहायक ब्यूरो हरीभूमि में कार्यरत रहे हैं ।

कलमकार श्री पाण्डेय वर्ष 2011 से 2016 तक दैनिक जागरण व्यूरो चीफ भी रहे और इसके बाद से वह दैनिक दबंग दुनिया मे निरंतर आज तक बतौर ब्यूरो कार्य कर रहे हैं। इतना ही नही आज के जमाने की शोषल मीडिया में भी वह दक्ष हैं। अक्सर ऐक्टिव रहने वाले रामविहारी पाण्डेय
ऑनलाइन मीडिया पलपल इंडिया तथा राजधानी डॉटकॉम जैसे अन्य न्यूज पोर्टलों में भी अपना वांछित सहयोग देते रहते है। जिले में उनकी छवि बड़े साफ सुथरे सीधे सादे पत्रकारों में गिनती होती है,लेकिन रामबिहारी की कलम सच लिखने की आदी है जो शायद ही किसी की कमी या अच्छाई को बख़्श दे , वह कब किसको डस दें कोई भरोसा नही ...?

कोमल और कठोर कलमकार श्री पाण्डेय निष्छल हैं किंतु सम्मान के साथ जरा भी इधर उधर हुआ तो मानो फिर खैर नही ...! यह अच्छी बात है सम्मान सर्वोपरि है किंतु उनके साथ अक्सर विश्वासघात होना भी एक आम बात है।उन्ही के शब्दों में कहें कि पत्रकारिता में राजनीतिक दखल कलम को भोथरी बना देती है .... वहरहाल " रामविहारी सब पर भारी "

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