रांची (ईन्यूज़ एमपी): झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और आदिवासी नेता शिबू सोरेन का सोमवार शाम 4 अगस्त 2025 को नई दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में निधन हो गया। वे 81 वर्ष के थे और लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उन्हें किडनी, हृदय और मधुमेह संबंधी गंभीर समस्याएं थीं। अंतिम दिनों में उन्हें ब्रेन स्ट्रोक भी आया था, जिसके बाद वे जीवनरक्षक प्रणाली पर थे। पिछले एक महीने से वे दिल्ली के गंगा राम अस्पताल में भर्ती थे। चिकित्सकों ने बताया कि उनकी किडनी लगभग काम करना बंद कर चुकी थी, हृदय की धड़कन अनियमित थी और वे कई बार बेहोश हो चुके थे। तमाम प्रयासों के बावजूद 4 अगस्त की दोपहर उन्होंने अंतिम सांस ली। शिबू सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक थे। वे झारखंड राज्य की स्थापना से लेकर आदिवासी हक की लड़ाई तक हर संघर्ष के केंद्र में रहे। उन्हें आदिवासी समाज में ‘दिशोम गुरु’ की उपाधि से जाना जाता था। वे तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने—मार्च 2005, अगस्त 2008 से जनवरी 2009 और दिसंबर 2009 से मई 2010 तक। हालांकि कोई भी कार्यकाल वे पूरा नहीं कर सके। उन्होंने लोकसभा और राज्यसभा दोनों में झारखंड का प्रतिनिधित्व किया और केंद्र में कोयला मंत्री भी रहे। उनके निधन पर झारखंड समेत पूरे देश में शोक की लहर है। उनके पुत्र और झारखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भावुक होते हुए कहा, "आज मैं शून्य हो गया हूं। दिशोम गुरु अब हमारे बीच नहीं रहे। उनका संघर्ष, सिद्धांत और समर्पण हमें हमेशा प्रेरित करता रहेगा।" झारखंड सरकार ने 4, 5 और 6 अगस्त तक तीन दिवसीय राजकीय शोक की घोषणा की है। 4 और 5 अगस्त को सभी सरकारी कार्यालय बंद रहेंगे और राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा। झारखंड विधानसभा का मानसून सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया। विधानसभा में श्रद्धांजलि के दौरान “शिबू सोरेन अमर रहें” के नारे लगे। देशभर के राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों और आम जनता ने गहरी श्रद्धांजलि अर्पित की है। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, गृह मंत्री, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित अनेक नेताओं ने शोक व्यक्त किया और इसे झारखंड के साथ-साथ पूरे देश के लिए अपूरणीय क्षति बताया। शिबू सोरेन केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि एक आंदोलनकारी, विचारक और आदिवासी अस्मिता के प्रतीक थे। उनका जाना झारखंड की राजनीति में एक युग के अंत जैसा है। उनकी अंतिम यात्रा रांची में निकाली जाएगी, जहां हजारों लोग उनके अंतिम दर्शन के लिए उपस्थित रहेंगे। उनकी राजनीतिक और वैचारिक विरासत को उनका परिवार, झारखंड मुक्ति मोर्चा और उनके लाखों अनुयायी आगे बढ़ाएंगे। दिशोम गुरु अब भले ही हमारे बीच न हों, लेकिन उनके विचार और संघर्ष की गूंज झारखंड की धरती पर सदैव सुनाई देती रहेगी।