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सीधी : चेहरे चर्चित चार -नेता अफसर विधिक पत्रकार ...

आदरणीय पाठक बंधु
सादर अभिवादन स्वीकार हो।
हम आपके लिए एक ऐसा धारावाहिक लेख प्रस्तुत कर रहे है, जिसमे चार ऐसे लोंगो की जानकारी विशेष है , जिन्होंने विभिन्न अलग अलग क्षेत्रो पर बहुत अच्छा कार्य करके लोंगो का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है, जैसा कि आप हेडिंग से उन कार्यक्षेत्रों के बारे में समझ गए होंगे।
मेरी पूरी कोशिश होगी कि उनलोंगो के जीवन के कुछ रोचक, सुखद, और संघर्ष के बारे में जानकारी इकट्ठा करके लिख सकूं, और सहज शब्दो के माध्यम से उस भाव को आपके सामने प्रकट कर सकूं, जिससे आप किसी भी घटना क्रम को पूर्ण रूप से सही समर्थन दे सकें।
आपका
सचीन्द्र मिश्र
सीधी

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📱 चेहरे चर्चित चार📱
नेता अफसर - विधिक पत्रकार
जिनकी कहानी कलम लिखेगी " समाजसेवी " व्यापारी और वैद्य रचनाकार ।


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👉 डॉक्टर राजेश मिश्र ✍️
पूर्व अध्यक्ष

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सीधी जिले का एक ऐसा व्यक्ति जिसने आधी उम्र तक चिकित्सकीय पेशे से जुड़कर काफी इज्जत और शोहरत बनाई, फिर अचानक न जाने क्या विचार आ गया और सन 2008 में वह व्यक्ति सबको आश्चर्य में डालते हुए सरकारी नौकरी से स्तीफा राजनीति में कूद जाता है, और शुरुआत में ही उसकी चुनावी बयार में ऐसी आंधी चली की लगा कि सब अन्य दिग्गजों के झंडे उड़ जाएंगे, पर चुनाव परिणाम प्रतिकूल होते हुए भी वह व्यक्ति सीधी के स्थापित नेताओ के समकक्ष खड़ा हो कर अपना झंडा गाड़ लेता है।
वो व्यक्ति है डॉ राजेश मिश्रा.....
जिनका जन्म 1956 में चुरहट क्षेत्र के अकौरी में हुआ, इनके पिता कृष्णदत्त शास्त्री जी उस जमानेके और उस क्षेत्र के एक अच्छे प्रतिष्ठित शिक्षक रहे हैं, प्रारंभिक और स्कूली शिक्षा इन्होंने पिता जी के साथ रह कर सेमरिया से की। फिर कॉलेज की पढ़ाई बीएससी रीवा से हुई, वर्ष 1980में बीडीएस की पढ़ाई इंदौर से की। और उसके बाद सरकारी चिकित्सक पद पर नियुक्त हो गए, और पहली सेवा 1981 में दंतेवाड़ा छत्तीसगढ़ से शुरू हुई, और 1982 में जिला चिकित्सालय सीधी में पदस्थापना हो गई।


डॉक्टर मिश्रा बताते है कि उनका बीच बीच मे राजनैतिक कारणों से ट्रांसफर इधर उधर होते रहे लेकिन मैं कही गया नहीं अक्सर अवकाश पर चले जाते थे । सीधी में बतौर मलेरिया अधिकारी रहते हुए खूब कार्य किया। और 2008 में स्वेच्छा रिटायरमेंटी ले ली। नौकरी से मुक्त होते ही राजेश मिश्रा कूद गए राजनीति में और पूरे मिजाज में थे विधानसभा चुनाव लड़ना है, लेकिन टिकिट बड़ी पार्टियों में जाने से मिलेगा नहीं, इस लिए उन्होंने बसपा का झंडा उठा लिया, उन दिनों एक साल पहले ही बसपा उत्तरप्रदेश में पहलीबार प्रचंड बहुमत से सत्ता पर आई थी, और उस बार की बसपा अलग थी, जिसमे सवर्णों का भी खूब समर्थन था, उसके पीछे एक शोशल इंजीनियर का नाम उभरा सतीश चंद्र मिश्रा जिसने उस चुनाव में ऐसा नारा दिया कि लंबे अर्से की मनमुटाव भूल अगड़ा पिछड़ा सब एक झंडे के नीचे आकर इतिहास रच दिया, और उत्तरप्रदेश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि कोई पार्टी इतनी बड़ी बहुमत से आई और 5 साल का कार्यकाल पूरा की।
शायद इस वात को सीधी के मिश्रा ने अच्छे से पढ़ लिया था और बसपा के टिकिट से चुनाव लड़ गए, और उसका असर यहां भी उनके चुनाव में था, लेकिन अखाड़े में उनका पहला द्वंद था, और प्रतिद्वन्दी बड़े दांव के जानकार थे, इसलिए मिश्रा जी को पराजय देखना पड़ा, और कुछ ही महीनों बाद राजेश मिश्रा ने भाजपा ज्वाइन कर ली, मध्यप्रदेश चिकित्सा प्रकोष्ठ के पदाधिकारी हो गए, 2014 लोकसभा चुनाव के प्रभारी भी नियुक्त हुए, और अच्छा कार्य किया, जिसके कारण 2017 में भाजपा ने इनको जिलाध्यक्ष बना दिया, तब शायद मन मे अगले विधानसभा के टिकिट का भी ख्याल रहा हो, जिसे पूर्णतः खारिच करना भी गलत होगा क्योंकि राजनीतिक शुरुआत ही चुनाव से हुई थी, पर अब परिस्थितियां इतनी सहज नहीं थी, लेकिन अध्यक्षी के कार्यकाल में इनके 2018 का विधानसभा चुनाव और 2019 का लोकसभा चुनाव हुआ जिसमें बेहतर पार्टी का प्रदर्शन रहा।
उसके अलावा पार्टी ने इनको अन्य राज्यों यूपी, बिहार, असम, में भी चुनाव प्रचार में जिम्मेवारियां दी थी।
राजेश मिश्रा ने संघ के माध्यम से टिकरी और गिजवार में बड़ा स्वास्थ शिविर लगाया था, बर्तमान में वह कोविड 19 में संघ की तरफ से संयोजक की सक्रिय भूमिका में कार्य कर रहे है।

राजेश मिश्रा अब खुद कहते है कि विधायक बनना महत्वपूर्ण नहीं है, व्यक्ति का महत्वपूर्ण होना जरूरी है, अब पद की कोई लालसा नही अंतिम दम तक भाजपा की सेवा करते रहेंगे।
वहीं कुछ लोंगो का मानना है कि डॉ राजेश मिश्रा स्वाभाविक नेता नही बल्कि शौखिया नेता है, जिन्होंने बहुत कुछ पाने के बाद - बहुत कुछ पाने राजनीति में आ गये जन सेवा और मानव सेवा के लिए तो भला चिकित्सकीय माध्यम से अच्छा क्या हो सकता है। लेकिन मिश्रा जी मानते है कि उनका विरोधाभाष आम लोंगो में नही बल्कि विशिष्ट लोंगो में हैं।


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👉 कमला कोल✍️
C.M.O.
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अमूमन ऐसा होता है कि महिलाओं के आत्मनिर्भर का जिक्र छिड़ते ही हमारे जेहन में उन सफल महिलाओं की तस्वीरें उभरने लगती हैं, जो या तो किसी नामीगिरामी कंपनी की सीईओ हैं या फिर कोई बड़ी सामाजिक कार्यकर्ता या फिर कोई सेलिब्रेटी....
हम क्यों अशिक्षित आदिवासी परिवार के किसी महिला, घरेलू कामगार, महिला, कैब ड्राइवर या मज़दूरी करने वाली किसी महिला को सशक्तिकरण से जोड़कर देखने के आदी नहीं हैं..? क्योंकि इन महिलाओं के संघर्ष चकाचौंध भरी महिलाओं की उपलब्धियों के नीचे दबकर रह जाते हैं । आज हम एक ऐसी महिला का जिक्र करने जा रहे हैं, जिन्होंने अपनी अशिक्षित माता की प्रेरणा से सशक्तिकरण की नई परिभाषा गढ़ी और पुरुष प्रधान समाज की तमाम बंदिशों को चुनौती देते हुए अपनी राह खुद बनाई ..,.. जी हां हम बात कर रहे हैं नगरपालिका परषिद सीधी की CMO कमला कोल की जिनका जन्म 25अक्टूबर 1982 को अनूपपुर जिले के कोतमा में हुआ है । पिता चैतू कालरी में कर्मचारी थे जवकि माता गृहणी हैं ।



मुख्य नगरपालिका अधिकारी सीधी कमला कोल ने वर्ष 2006 में PSC क्वालीफाई करके छिंदवाड़ा जिले के सौसर से नौकरी का श्री गणेण किया है । कोतमा , अनूपपुर , बिजुरी , मैहर में सेवायें देने के उपरांत वह 22 जनवरी 2021 से वतौर CMO सीधी जिले में पदस्थ हैं । मैहर में पदस्थापना के दौरान कमला राजनीतिक कारणोंवश काफी सुर्खियों में रही हैं , चूंकि नगरी निकाय संस्थान काजल की कोठरी के समान होते हैं ...? और किसी के दबाव में कार्य करना कमला के फितरत में नही है , यही कारण है कि वह चर्चित चेहरों में सुमार हैं । कार्य के प्रति संवेदनशील इस महिला अधिकारी ने वैश्विक महामारी कोरोना से नागरिकों को निजात दिलाने की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया है । कमला कोई दाता नही हैं किंतु मोहरा होने के नाते नगर में कोई भूंखा न रहे नि:शुल्क दीनदयाल रसोई का संचालन , जरूरतमंदों को राशन पर्ची का वितरण का कार्य कर रही है , कोरोना वार्ड से लेकर नगर की साफ सफाई का कार्य सहित शवों के अंतिम संस्कार कराने तक दायित्व निर्वहन कर रही हैं ।



शिक्षित महिला हमेशा जागरूक रहती है और दूसरी महिलाओं को भी जागरूक करती है। लेकिन कमला की अनपढ मां ने अपने चारों बेटियों से किसी प्रकार भेदभाव न करके उन्हें उच्च शिक्षा दिलवाई और वह आज अपने पैरों में खड़ी हैं , वर्तमान की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों को देेखते हुए महिला का शिक्षित होना बेहद जरूरी है। यदि महिलाएं शिक्षित होंगी तो समाज भी शिक्षित व सभ्य होगा।
विपरीत हालात में भी कमला की अनपढ मां ने कमला को सीएमओ की कुर्सी पर पहुंचाई हैं। संयुक्त परिवार में समानता, सुरक्षा और शिक्षा का बंदोबस्त करके बेटे और बेटियों को आज इस मुकाम में पंहुचाकर समाज का नाम रोशन किया है ।


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👉 प्रदीप निगम✍️
वरिष्ठ अधिवक्ता

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सीधी जिले में विधि व्यवसाय के क्षेत्र में 4 दशक से सक्रिय सैद्धांतिक जीवन समाजवादी विचारों के साथ जीने वाले कर्मठ व्यक्तित्व की चर्चा आज करने जा रहा हूँ वह नाम है वरिष्ठ अधिवक्ता प्रदीप निगम जी का, आपका जन्म 31-12-1955 को ग्राम नैकिन तहसील रामपुर नैकिन मे हुआ था, BSC, LLB की शिक्षा महाविद्यालय सीधी से करके वर्ष 1980 मे जिला न्यायालय सीधी में वकालत पेशा की शुरुआत किया, श्री निगम जी दीवानी मामलों के जाने माने वकील है दावा जवाबदावा तैयार करने में महारत हासिल है जूनियर अधिवक्ता कानूनी सलाह व प्रकरणों से सम्बधित मदद आपसे चाहते हैं उनकी मदद आपके द्वारा किया जाता रहता है!


वकालत मे काफी लंम्बा संघर्ष आपने किया है तथा कुछ अनोखे मामले ऐसे भी रहे हैं जिसमें वकीलों के हित के लिए न्यायपालिका से भी टकराने में आप पीछे नहीं रहे! राजनीति के क्षेत्र में इनकी रुचि विशेष नहीं है लेकिन अधिवक्ता राजनीति से सदैव जुड़े रहे , वर्ष 1982 मे अधिवक्ता संघ के उपाध्यक्ष रहे तथा 1984 मे जिला अधिवक्ता संघ का विधिवत वायलांज के अनुसार चुनाव प्रक्रिया शुरू हुई जिसमें बतौर कार्यवाहक अध्यक्ष आपने निर्वाचन करवाया था उस निर्वाचन प्रक्रिया में वर्तमान विधायक सीधी केदारनाथ शुक्ल सहायक निर्वाचन अधिकारी रहे हैं! श्री प्रदीप जी वैचारिक रूप से समाजवादी विचार से प्रभावित होकर स्वर्गीय चंद्र प्रताप तिवारी जी से काफी समय तक जुड़े रहे हलांकि राजनीति मे निगम जी की रुचि नहीं है किन्तु राजनीति में सीधी विधायक केदारनाथ शुक्ल जी को पसंद करते हैं इन्हें मोदीवाद पसंद नहीं है कुल मिलाकर सीनियर एडवोकेट श्री निगम जी सादा जीवन उच्च विचार मंत्र के साथ बात के पक्के तथा चापलूसी न पसंद करने के आदी है और यही विशेषता उन्हें वकालत मे विशेष स्थान प्रदान करता है ।



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👉 ओ.पी. पाठक ✍️
वरिष्ठ पत्रकार

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पत्रकारिता जिस दिन सत्ता की दलाली करने लगे उस दिन नए लोकतंत्र की जरूरत पड़ेगी, पत्रकारिता हमेशा से विपक्ष की भूमिका निभाते हुए लोकतंत्र को जीवंत रखने के प्रयास में जुटी हुई है, उसी कड़ी में निर्वाध रूप से काम करने में जुटे हुए हैं, पत्रिका समाचार पत्र के पत्रकार ओपी पाठक की ...जिनकी धारदार कलम में दम तो है जिसे हम नकार नही सकते ।


आरोप-प्रत्यारोप की परवाह न करते हुए हमेशा सत्ता के आंखो की किरकिरी बने रहना अब उनकी आदत में शुमार हो चुका है। ओपी पाठक की प्रारंभिक शिक्षा उनके गृह क्षेत्र सिहावल से शुरू हुई। बायो ग्रुप से स्नातक की शिक्षा रीवा माडल साइंस कालेज से पूरी किए, स्नातकोत्तर इतिहास से संजय गांधी महाविद्यालय सीधी, बीएड रीवा विश्वविद्यालय, पायलट प्रोजेक्ट योजना अंतर्गत इंजीनियरिंग की शिक्षा सिंगरौली में अर्जित किए। जिंदगी के उतार चड़ाव के बीच वे पत्रकारिता की शुरूआत वर्ष २००९ में शुरू किए, तब से वे पत्रकारिता की जगत में सिमट कर रह गए। १२ वर्ष की पत्रकारिता के कार्यकाल में विभिन्न समाचार पत्रों में काम किए। वे खुद को आज भी अनुभव में अपने आप को कम आकते हुए अपने वरिष्ठो से सीखने का प्रयास करते हैं। पत्रकारिता की जगत में वे धी बृजेश पाठक, आरबी सिंह, सचीन्द्र मिश्र, धीरेन्द्रधर द्विवेदी और मनोज पांडेय को अपना आदर्श मानते हुए काम करने के प्रति प्रेरित होते रहते हैं। वो अपनी कलम को न तो अपना लश्कर समझते हैं, न अपना सरताज और नहीं झूठ लिखने का अस्त्र बल्कि जनता की समस्या को प्रशासन तक पहुंचाने का कलम को एक शसक्त माध्यम के रूप में देखते हैं, यही कारण है कि ओ.पी . हमेशा सुर्खियों में रहते हैं ।

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