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सीधी : चेहरे चर्चित चार - नेता अफसर , विधिक पत्रकार ....

आदरणीय पाठक बंधु
सादर अभिवादन स्वीकार हो।
हम आपके लिए एक ऐसा धारावाहिक लेख प्रस्तुत कर रहे है, जिसमे चार ऐसे लोंगो की जानकारी विशेष है , जिन्होंने विभिन्न अलग अलग क्षेत्रो पर बहुत अच्छा कार्य करके लोंगो का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है, जैसा कि आप हेडिंग से उन कार्यक्षेत्रों के बारे में समझ गए होंगे।
मेरी पूरी कोशिश होगी कि उनलोंगो के जीवन के कुछ रोचक, सुखद, और संघर्ष के बारे में जानकारी इकट्ठा करके लिख सकूं, और सहज शब्दो के माध्यम से उस भाव को आपके सामने प्रकट कर सकूं, जिससे आप किसी भी घटना क्रम को पूर्ण रूप से सही समर्थन दे सकें।
आपका
सचीन्द्र मिश्र
सीधी

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📱 चेहरे चर्चित चार📱
नेता अफसर - विधिक पत्रकार
जिनकी कहानी कलम लिखेगी " समाजसेवी " व्यापारी और वैद्य रचनाकार ।


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👉 तिलकराज सिंह ✍️
पूर्व सांसद

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आज की कहानी उस नेता की जिसने सीधी के इतिहास में सबसे कम समय तक सांसद सदस्य रहा, पर सबसे अधिक प्रधानमंत्रीयों के कार्यकाल तक सदन का सदस्य रहा। आज जिक्र पूर्व सांसद तिलकराज सिंह का जिनका जन्म अक्टूबर 1966 में सिंगरौली (उस समय के सीधी) जिले के बरका गाँव मे हुआ, पिता तिलकधारी सिंह क्षेत्र के प्रतिष्ठित नेता, और किसान थे। पिता कई बार सभापति फिर जनपद अध्यक्ष भी रहे, और जब चिंतामणि तिवारी जिलापंचायत अध्यक्ष थे उस समय वह जिलापंचायत उपाध्यक्ष भी रहे।
पिता तिलकधारी सिंह काँग्रेस के अच्छे नेताओ में थे, जिसके कारण स्व अर्जुन सिंह की भी उनको काफी नजदीकी प्राप्त थी।

लेकिन युवा तिलकराज की पिता से राजनीतिक विचारों में काफी दूरी थी,
कारण था कि तिलकराज को दलगत राजनीति बिल्कुल पसंद नही थी जिसका साफ कारण था कि तिलकराज रीवा दरबार कॉलेज के छात्र थे, जो उस समय जनांदोलन वाले नेताओं को बनाने की कंपनी थी, और रीवा की हवा उस समय दिल्ली जैसी हर समय आंदोलित रहती थी।
पढ़ाई के बाद चार वर्ष तक तिलकराज इधर उधर राजनीतिक मंचो पर भटकते रहे पर साफ स्वभाव के तिलकराज का मन कहीं लगा नहीं।
और 1989 का विधानसभा चुनाव तिलकराज ने निर्दलीय लड़ लिया,उस चुनाव को याद करते हुए तिलकराज बताते है कि पिता तिलकधारी सिंह काँग्रेस के प्रति इतना समर्पित थे कि उन्होंने न मेरा प्रचार किया न मुझे वोट दिया।

फिर 1990 के आसपास मुलाकात हुई सीधी के जन नेता मिस्टर बृजेन्द्र नाथ से और उन्होंने जनता दल का युवा जिलाध्यक्ष बना दिया। फिर 1994 में तिलकराज पंचायत चुनाव की सीढ़ी चढते हुए जिला पंचायत उपाध्यक्ष बन गए, इस समय जिले के कांग्रेसी नेताओं से काफी तालमेल उठना बैठना हो गया, लेकिन वक़्त ने आश्चर्यजनक करवट ली और वही कांग्रेसियों ने काँग्रेस से मुह मोड़ लिया, और 1995 में तिवारी काँग्रेस का गठन हो गया, और 1996 में लोकसभा चुनाव होना था जिसमे तिलकराज तिवारी काँग्रेस से प्रत्याशी चयनित होते है , और किस्मत ने साथ दिया और तिलकराज संसद निर्वाचित हो जाते है। तिवारी काँग्रेस के प्रमुख रणनीतिकार स्व अर्जुन सिंह थे, और उनका सीधी गृह जिला, इस लिए तिलकराज देश भर के सांसदों के बीच आकर्षण और चर्चा का विषय थे, और सांसद रहते ही तिवारी काँग्रेस का विलय फिर काँग्रेस पार्टी में हो गया।
वह कार्यकाल सत्रह महीने का था जिसमे तिलकराज ने तीन प्रधानमंत्री बनते बिगड़ते देख लिए थे, देश की राजनीतिक उठापटक के हिस्सा बन चुके थे ।

पूर्व सांसद तिलकराज से " चेहरे चर्चित चार " कालम के बारे में जब उन्हें अवगत कराया गया तब उस घटना क्रम के दौरान एक बाकया याद करते हुए तिलकराज बताते है कि सांसद सदन में मेरी दोस्ती महेंद्र कर्मा जी से हो गई, और वो एक दिन मुझे बड़े नेता सुरेश कलमाडी़ के पास लेकर पहुच गये, वहां हमने देखा कि पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव के बेटे सहित 12 सांसद बैठे थे, शराब कबाब की भी व्यवस्था थी, लेकिन मैंने सिर्फ कोल्ड ड्रिंक लिया, आदिवासी नेता होने के कारण और दिल्ली की बड़ी राजनीति की आवोहवा से कम परिचित होने के कारण मैं इस विश्वास में था की सारे लोग कांग्रेसी हैं, और अर्जुन सिंह जी के कट्टर समर्थक है।
और तभी उस सभा मे एंट्री होती है एक भाजपा नेता दिलीप सिंह भूरिया की जो हमें (तिलकराज को) देखकर चकित रह जाते है कि ये तो अर्जुन सिंह जी का आदमी है और इनके सामने सारी गोपनीय बातें हो रही, जिसमे सांसदों को तरह तरह का प्रलोभन दिया जा रहा था, की सांसदों को उस समय बेतन केवल 1500 रुपये ही मिलते थे,और सब कुछ मिलाकर 5000 होते थे। उस मीटिंग में पैसों के बड़े प्रस्ताव दिये जा रहे थे अविश्वाश प्रताव में वोटिंग के लिए। मैं वहां से निकला और आवास पर आते ही अर्जुन सिंह जी को फोंन लगाया और घटना बताई, उन्होंने कहा " कल शुबह आबा त बात होई " रात भर हमें नींद नहीं आई, और शुबह ही मैं उनके आवास पर पहुच कर उनको सारी स्थिति बता दी, जिसे सुन कर कुँवर साहेब दंग रह गए, और हमसे कुछ देर बाद बोले की " तू अबे उनहीं के टीम म शामिल रहा अउर हमका हर स्थिति का बतावत रहै "

फिर मैं उनका विश्वासी बन कर उनकी टीम में रह कर सबकुछ कुँवर साहेब को बताता रहा, और यही पर कुँवर साहेब काँग्रेस की आंतरिक लड़ाई में जीत गए, और नरसिम्हाराव का पार्टी ने 6 साल का निष्कासन कर दिया, और कुँवर साहेब फिर से पार्टी में प्रभावशाली अस्तित्व में आ गए, और सोनिया जी अध्यक्ष हुईं, और देश की राजनीति कुँवर साहेब दूसरे नंबर के श्रेणी दिग्गज नेताओं में शुमार हो गए।
तिलकराज आगे बताते है कि हमारे पिता जी और अर्जुन सिंह के काफी गहरे संबंध थे, उन्ही के इशारे पर क्षेत्र के सारे काम होते थे, 1968 में पिता जी ने जगवा देवी को निर्दलीय जिता कर कुँवर साहेब को सौंपा था।
तिलकराज ने उसके बाद दो लोकसभा चुनाव लगातार लड़े लेकिन जीत नहीं मिली, और 2003 में विधानसभा चुनाव भी लड़े लेकिन तब तक पार्टी विरोध माहौल था, और प्रदेश में भाजपा की वापसी हो रही थी, इसलिए उस बार भी जीत नहीं मिली।
इस बीच तिलकराज सन 2000 से अविभाजित सीधी के लगातार 2011 तक अध्यक्ष रहे, इस दौरान उन्होंने सीधी जिले का भी पार्टी का अंतर्द्वंद देखा है उस समय अध्यक्ष रहते हुए, एक नेता का पार्टी में उदय देखा है, जिसमे कप्तान तिलकराज होते थे, लेकिन उस नवोदित नेता की रणनीति से पार्टी के कार्यक्रमो निरंतरता, और जनता का हुजूम और कार्यकर्ताओं की उत्साह बहुत दिन बाद पार्टी ने देखा था, और तब तिलकराज स्व इंद्रजीत कुमार के सांथ जिले भर में आंदोलन प्रदर्शन की गिनतियों का रिकॉर्ड कायम कर दिये थे, उसके बाद फिर पार्टी लंबे दिन से उस तरह के आंदोलनों का और कार्यकर्ताओं का सूखा झेल रही है , लेकिन उसके बाद तिलकराज अब तक सिंगरौली के अध्यक्ष का कार्यकाल देख रहे हैं।
तिलकराज सिंह कहते है कि पहले की राजनीति और अब की राजनीति में बहुत अंतर आ गया है, पहले इतना झूठ फरेब नही था, नेता विचारधारा के विरोधी थे, उसमें कोई कही समझौता नही हो सकता था, लेकिन समरसता और सदभाव भी बहुत था, रंजिश बिल्कुल नही थी। सीधी के राजनीति में तिलकराज सबसे शांत नेताओ में गिने जाते है , जिनके समर्थक आज भी इस बात के इंतिजार में है कि एक बार फिर तिलकराज जैसे नेता का झंडा बुलंद होना चाहिए।


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👉रमेश मिश्र✍️
रिटायर्ड संयुक्त कलेक्टर
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अफसरों की जुबानी, करप्शन की कहानी आपने खूब सुनी होगी और अफसर बेदाग हैं , दागदार नही हैं यह वानगी भी आपको अतिश्योक्ति लगेगी , लेकिन यह सच है आज हम एक ऐसे रिटायर्ड ज्वांइट कलेक्टर रमेश मिश्र को आपसे अवगत करायेंगें जो सच में एक दमखम व कुशल प्रशासक रहे हैं । 30 अप्रैल 1955 को मौरा खड्डी में जन्मे रमेश की शिक्षा दीक्षा BA, और MA टीआरएस कालेज रीवा से हुई है , जबकि L.L.B. की पढाई शहडोल से हुई है । डिप्टी कलेक्टर के पहले रमेश अक्टूबर 1976 से अप्रैल 1977 तक शहडोल में सहायक प्राध्यापक रहे है एवं यूजीसी छात्रवृत्ति स्वीकृति होने पर वह रीवा से PHD की । एक बार फिर जुलाई 1979 से सितंबर 1979 तक वह सीधी में भी सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत रहे हैं 10 सितंबर 1979 को सहायक अधीक्षक भू अभिलेख शहडोल बनाया गया और 1998 में वह डिप्टी कलेक्टर बन गए बताओ डिप्टी कलेक्टर वह मध्य प्रदेश के विभिन्न जिलों में अपनी उल्लेखनीय सेवाएं दी हैं । पिछले 36 सालों तक एक राजस्व अधिकारी के तौर पर बेदाग सेवा के उपरांत 30 अप्रैल 2015 को रीवा जिले के मनगमा में वतौर SDM संयुक्त कलेक्टर के पद पर रहते हुए सेवानिवृत्त हो गए और वर्तमान में वह रीवा में निवासरत हैं ।


श्री मिश्र छात्र जीवन से ही सैद्धांतिक जीवन जीने तथा समाज में व्याप्त शोषण व अन्याय के विरोध में आवाज उठाते रहे हैं, उस दौर में एक समय ऐसा भी आया जब ये राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लिए एवं पूर्व विधायक स्वर्गीय राम खेलावन पाण्डेय जी के साथ क्षेत्र में खूब चर्चित रहे, उन दिनों में घटित एक वाकया को आपने साझा करते हुए बताया कि 1977 मे श्री पाण्डेय जी गोपद वनास से विधायक थे तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा जी का गड्डी क्षेत्र में भ्रमण था उस कार्यक्रम में सभी जगह संचालन की जिम्मेदारी इन्हें सौपी गयी इनके कार्य व्यवहार व संचालन से सकलेचा जी खूब प्रभावित होकर पीठ थपथपाई थी, उस कार्यक्रम में साथ चल रहे नेता स्वर्गीय राज बली सिंह जी इनसे ईर्ष्या करने लगे तथा मुख्यमंत्री जी के दौरे के बाद इनकी राज बली सिंह से मतभेद हो गया और संयोगवश वर्ष 1979 मे शासकीय सेवा में चयन हो जाने के कारण नेतागिरी को अलविदा कह नौकरी करने लगे, प्रशासनिक अधिकारी के पद पर आप जहाँ भी रहे वहा एक ईमानदार कड़क प्रशासक की छवि रही हैं, राजस्व प्रकरणों के फैसले जो आपने किए है वह नजीर है, आप एक अधिकारी के बतौर कभी भी किसी के दबाव को न मानते हुए जो न्यायोचित है वही करते थे, कुल मिलाकर कहा जाय कि रमेश मिश्र जी राजनीति की रपटीली राह को छोड़ कर प्रशासनिक क्षेत्र में तमाम विसंगतियों को पार करते हुए सफल अधिकारी के रूप में जाने जाते रहेगे ।



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👉 गिरिजा कुमार सिंह ✍️
वरिष्ठ अधिवक्ता
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विधि के क्षेत्र में सीधी जिले के एक ऐसे चेहरे की चर्चा कर रहा हूँ जो वकालत व राजनीति दोनों मे जिनकी दमदार छवि रही है वह नाम है वरिष्ठ अधिवक्ता गिरजा कुमार सिंह .... जिनका जन्म 28-08 1949 को पांड मझौली में हुआ था, BSC आपने महाविद्यालय सीधी से व दरबार कालेज रीवा से LLB की डिग्री हासिल किया उस दौर में छात्र राजनीति में सक्रिय होने के कारण वकालत वर्ष 1976 मे शुरू किया, आप कानून के अच्छे जानकर व सिविल, क्रिमिनल, राजस्व सभी तरह के मामले की पैरवी के लिए जाने जाते हैं , श्री गिरजा राजनीति के भी अच्छे खिलाड़ी रहे हैं वर्ष 1968 मे डिग्री कालेज की पढ़ाई के दौरान अर्जुन सिंह जी जब यूथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे तब इन्हें सीधी यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष की कमान सौपी थी उसके बाद 1972 में जिला काग्रेस कमेटी के महामंत्री की जिम्मेदारी का निर्वहन 1980 तक लगातार आपने किया, इसी वर्ष विधानसभा चुनाव में ये गोपद बनास से चुनाव लडना चाहते थे लेकिन कुंवर साहब द्वारा कमलेश्वर द्विवेदी जी को टिकट देने के कारण नाराज होकर गिरिजा निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में गोपद बनास विधानसभा में तीसरे स्थान पर रहे, वर्ष 1985 मे श्री सिंह भाजपा ज्वाइन कर लिए उस समय छात्र राजनीति से भाजपा में केदारनाथ शुक्ल भी सामिल हो गये इन दोनों के बीच अच्छे संबंध भी रहे, गिरजा कुमार सिंह गोपद बनास में ही सक्रिय रहना चाहते थे लेकिन गोपद बनास विधानसभा का नेतृत्व केदारनाथ शुक्ल जी के हाथ मे चला गया तब इन्होंने भाजपा को भी अलविदा कह कर राजनीति से पूर्णतः विरत होकर वकालत के क्षेत्र में डटे हुए है, श्री सिंह साहब राजनीति के क्षेत्र में मन मुताबिक भले सफलता नहीं प्राप्त कर सके पर एक वकील के रूप में आपकी पहचान जुझारू व निडर स्वभाव के जीवट व्यक्तित्व की है! बहरहाल सीनियर मोस्ट एडवोकेट गिरजा कुमार सिंह अपने मन के राजा, कभी दबाव मे न तो वकालत की और न ही नेतागिरी, पिछले वर्षों में जब मुनींद्र द्विवेदी जी अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष रहे उनके कार्यकाल में तीन बार निर्वाचन अधिकारी भी रहे हैं अब स्वास्थ्य कारणों से भले उतने सक्रिय नहीं है लेकिन अनुभव व तजुर्बा बोलता जरूर है!


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👉 ऋषिकेश मिश्र ✍️
वरिष्ठ पत्रकार

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आज हम बात करेंगे सीधी जिले में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की अलख जगाने वाले पत्रकार ऋषिकेश मिश्रा की जिसने एक दशक पहले सीधी में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को एक नया आयाम दिया। पत्रकार ऋषिकेश मिश्रा का जन्म जबलपुर के भेड़ाघाट के नजदीक ग्राम आमहिनौता में 21 अगस्त 1976 को हुआ । इनके पिता स्व. देवदत्त मिश्र जी भारतीय स्टेट बैंक में उच्च अधिकारी व अधिकारी संघ के अध्यक्ष थे ।
ऋषिकेश की प्रारंभिक शिक्षा शहडोल जिले में हुई| इसके आगे की पढ़ाई उन्होंने जबलपुर से किया | बीए व बीजेएमसी रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर से प्राप्त करने के बाद वर्ष 17 फरवरी 2003 में ईटीवी से पत्रकारिता की शुरूआत की। आज से दो दशक पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का उदय हुआ था। उस वक्त मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ को मिलाकर प्रदेश में केवल दो क्षेत्रीय इलेक्ट्रॉनिक टीवी चैनल ईटीवी और सहारा समय हुआ करते थे। ऋषिकेश इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता में नए थे लेकिन उन्हें इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता के गुर अच्छे से आता था। सीधी जिले में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले ऋषिकेश इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को इतने अच्छे से भांप लिए थे वह अपने सीनियर व जूनियर सभी पत्रकार साथियों को खबरों को लेकर खबरों की बारीकियां सिखाया करते थे। बेहद कम समय में ऋषिकेश ने सीधी में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली थी। लगभग 5 साल सीधी में कार्य करने के दौरान सीधी के सीनियर व जूनियर साथियों से आज भी उन्हें बहुत लगाव है जो आज भी बरकरार है| अपनी कार्यशैली और अपने स्वभाव के चलते प्रशासनिक अधिकारियों, राजनीतिक दलों, व्यवसायियों और आमजन से मित्रवत व्यवहार उनका सदैव बना रहा | उन्हें शुरूआत में जातिवाद के चलते कुछ दिक्कत हुई जो समय के साथ ठीक हो गई| उन्हें सीधी के लोगों की सहजता संस्कार , और वंयजन हमेशा याद आते रहेगें । वर्ष 2010 में उनका तबादला मंडला कर दिया गया और फिर बाद में वे 2011 में दैनिक भास्कर ज्वाइन कर लिए और वर्तमान में भी ऋषिकेश वहां वरिष्ठ उप संपादक के तौर पर कार्यरत है।

ऋषिकेश की उत्कृष्ट लेखनी के हम जैसे पत्रकार आज भी मुरीद हैं सरल सहज व्यक्तित्व के धनी टूटीफूटी बघेली से स्नेह रखने वाले श्री मिश्र का कृषि क्षेत्र से काफी लगाव है , पत्रकारिता के साथ साथ वह एक अच्छे किसान भी हैं संस्कारधानी जबलपुर शहर से लगे खेतों में खेती किसानी का भी तन्मयता से कार्य कर रहे हैं , वह आज के परिवेश में आधुनिक खेती को जंहा बढावा देने में तुले हैं वंही विभिन्न किस्मों के फंसलों की पैदावार ले रहे हैं ।

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