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सीधी : चेहरे चर्चित चार - नेता अफसर विधिक पत्रकार ...

आदरणीय पाठक बंधु
सादर अभिवादन स्वीकार हो।
हम आपके लिए एक ऐसा धारावाहिक लेख प्रस्तुत कर रहे है, जिसमे चार ऐसे लोंगो की जानकारी विशेष है , जिन्होंने विभिन्न अलग अलग क्षेत्रो पर बहुत अच्छा कार्य करके लोंगो का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है, जैसा कि आप हेडिंग से उन कार्यक्षेत्रों के बारे में समझ गए होंगे।
मेरी पूरी कोशिश होगी कि उनलोंगो के जीवन के कुछ रोचक, सुखद, और संघर्ष के बारे में जानकारी इकट्ठा करके लिख सकूं, और सहज शब्दो के माध्यम से उस भाव को आपके सामने प्रकट कर सकूं, जिससे आप किसी भी घटना क्रम को पूर्ण रूप से सही समर्थन दे सकें।
आपका
सचीन्द्र मिश्र
सीधी

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📱 चेहरे चर्चित चार📱
नेता अफसर - विधिक पत्रकार
जिनकी कहानी कलम लिखेगी " समाजसेवी " व्यापारी और वैद्य रचनाकार ।



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👉 मोहम्मद यूनूस ✍️
विशेष सलाहकार संहयोगी
(पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह)

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किस्सा 80 के दसक का है जब प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह जी के आवास में देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी भोजन कर रहे थे, उस दौरान उनके दोनों पुत्र, और पत्नी भोजन करा रहे थे, लेकिन इन लोंगो के अलावा एक और व्यक्ति महत्वपूर्ण रूप से उसी परिवार के साथ मौजूद था, कुछ देर में भोजन करने के बाद राजीव गांधी उसी व्यक्ति से अंग्रेजी में कुछ कहते है, और वह व्यक्ति जो राजीव गांधी को इतना नजदीक पाकर यकीन नहीं कर पा रहा था, उसे उनके शब्द सुनाई दिये पर वह हड़बड़ाहट में समझ नही पाया, इस बात को मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह जी तुरंत समझ गए, और राजीव गांधी को हाथ धोने की बेसिंग तक ले गए, और इस व्यक्ति को ढांढस देते हुए बोले डोंट बी नर्वस, बिफोर एनीबडी। यह व्यक्ति थे स्व. अर्जुन सिंह जी के विशेष सलाहकार सहंयोगी " मो . यूनुस " जिनका जन्म मुकुंदपुर जिला सतना में हुआ, कुछ समय बाद 1950 के आसपास इनका परिवार देवसर में आबाद हो गया। मो. यूनुस की शिक्षा उनदिनों बहुत अच्छी थी रीवा कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री इन्होंने प्राप्त की। पढ़ाई तो इन्होंने भले गणित विषय से की लेकिन अंदर लावा तो कुछ और ही धधक रहा था जिसके प्रभाव से यूनुस की कलम साहित्य लिखने लगी , यूनुस अब पत्रकारिता में लिखने लगे, और 1971 में दैनिक जागरण के जिला प्रतिनिधि सीधी थे, इसी दौरान उस दौर के बाँधवीय समाचार पत्र में भी लिखते थे, यूनुस की लेखनी जादुई थी,जिसके शब्दजाल किसी को भी चकित करते थे, तभी उनकी मुलाकात प्रदेश के शिक्षा मंत्री कुँवर अर्जुन सिंह से होती है जो उनके लेख से प्रभावित हो चुके थे ये 70 के दशक का शुरुआती दौर था, अर्जुन सिंह यूनुस को भोपाल आने का निमंत्रण देते हुए कहते है कि आपके लेखनी की हमें जरूरत है, तब यूनुस अर्जुन सिंह जी के हर खबर की कवरेज यूनुस करने लगे ।

1975 में यूनुस ने एक साप्ताहिक समाचार पत्र "सेना चल " नाम से प्रकाशित किया, जिसमें यूनुस ने इंदिरा युग नाम से विशेषांक प्रकाशित किया, जिसे स्वयं इंदिरा जी ने पढ़कर उस पर अपने हस्ताक्षर दिए, यूनुस बताते है कि इंदिरा जी के हस्ताक्षर युक्त वह विशेषांक सप्रे संग्रहालय भोपाल में रखा है। फिर दौर आया 1975 का जब अर्जुन सिंह प्रदेश के मुख्यंमंत्री बनते बनते रह गए, वही से यूनुस अब पूर्ण रूप से स्व.अर्जुन सिंह जी के राजनीतिक गतिविधियों में हांथ बटाने लगे, और सहयोगी के रूप में काम करने लगे, यूनुस बताते है तब अर्जुन सिंह जी के बड़े पुत्र अभिमन्यु सिंह जर्मनी में रहते थे, और छोटे पुत्र अजय सिंह दिल्ली में अध्ययनरत थे।
1977 के चुनाव को याद करते हुए यूनुस बताते है कि वह चुनाव बहुत रोचक था, जब आपातकाल के बाद पार्टी के प्रति व्याप्त असंतोष के कारण इंदिरा जी तक चुनाव हार गई लेकिन अर्जुन सिंह जी 8000 वोट से चुनाव जीत गए थे।

यूनुस के जीवन का सबसे स्वर्णिम समय तब आया जब 9 जून 1980 को अर्जुन सिंह जी मुख्यमंत्री की सपथ लेते है, और यूनुस को उनका विशेष सलाहकार नियुक्त किया जाता है।
उस दिनांक से यूनुस ने निरंतर सहयोगी के तौर पर अपनी सेवा दी
यूनुस बताते हैं दिसंबर 1984 का वह समय जब सीधी में लोकसभा चुनाव था और कांग्रेस के प्रत्याशी थे पूर्व सांसद मोतीलाल से उस दौरान साहब ने चुनाव संबंधित सभी जिम्मेदारियां यूनुस को सौंपी यहां तक की यूनुस मोतीलाल सिंह के इलेक्शन एजेंट भी रहे और चुनाव संचालन भी भलीभांति से सम्पन्न कराये। यंहां तक की इस चुनाव में साहब ने यूनुस से कहा था हम नहीं आएंगे " चुनाव तू देखै " वोटिंग के दिन रात में साहब ने यूनुस से पूछा कितने वोट मिलेंगे हमने अपने अंदाजों में बताया था कि 1 लाख से जीतेंगे उस समय सीधी संसदीय क्षेत्र में सीधी और सिंगरौली जिले का हिस्सा 6 विधानसभा क्षेत्र और छत्तीसगढ़ राज्य के 2 विधानसभा क्षेत्र मनेंद्रगढ़ और कोरिया भी सीधी लोकसभा क्षेत्र में शामिल था यूनुस के जीवन में यह सबसे बड़ी कड़ी परीक्षा थी और साहब द्वारा सौंंपे गये इस दायित्व में यूनुस खरे साबित हुए वोटिंग के दिन बताए गए आंकड़े के अनुकूल परिणाम के दिन मोतीला सिंह को एक लाख 60 हजार वोट मिले।अर्जुन द्वारा ली गई परीक्षा में युनूस पास हुए , बताते हैं कि यह हमारे लिए एक बड़ा गौरव और इतिहास का दिन था।
यूनुस बताते हैं कि स्वर्गीय अर्जुन सिंह की जब पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तब हमें छुट्टी कभी भी नसीब नही होती थी जब वह टूर में जाया करते थे तब भी हमें पब्लिक डीलिंग करनी पड़ती थी सीएम कार्यकाल के 5 सालों तक वह भोपाल से इधर उधर हिले नहीं साहब की सेवा में समर्पित रहे।

👉डिजिटल मीडिया" ईन्यूज एमपी " के विशेष आलेख " चेहरे चर्चित चार " के लिये जव हमने युनूस से फोन पर जानकारी चाही तो जीवन कि एक वड़ी घटना का उन्होंने जिक्र करते हुये बताया कि 2 दिसम्बर 1984 की रात आज भी झकझोर देती है । कारण कि यह वही रात थी जब भोपाल गैस त्रासदी काण्ड घटित हुआ था । यूनुस बताते हैं कि 2 दिसंबर कि 2:15 बजे रात सीएम हाउस में मैं सो रहा था अचानक आंख में जलन हुई नींद खुल गई हमने सोचा कि धुआं होगा उसी समय मैं बाहर निकला स्टेट गैरेज के ड्राइवर हल्ला मचाने लगे की गैस कांड हो गया रात के 2:30 बजे मैं ऑफिस पहुंचकर राजधानी के बड़े आला अधिकारियों को सूचित किया । साहब उस दिन पटना से वापस 11:00 बजे रात भोपाल आए थे और सो रहे थे मैंने साहब को जगाने के लिए जद्दो नामक नौकरानी से कहा तो उसने मना कर दिया ...तव भी साहस नही हुआ चूंकि उस समय भगदड़ मची हुई थी और मैं जाकर जगा दिया फौरन साहब आफिस में बैठकर सभी अधिकारियों से बात करके सच्चाई से वाकिफ होने के उपरांत प्रधानमंत्री राजीव गांधी को सूचित किया । यह सब करते करते शुबह हुई दिल्ली से लेकर भोपाल ऐक्शन में आ गया ... इस एक बड़ी घटनाक्रम के राहत व वचाव दल में से युनूस ने अपने फर्ज अदा किये थे ।

11 मार्च 1985 को फिर दूसरी बार अर्जुन सिंह जी मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हैं किंतु 12 मार्च को वह पंजाब के राज्यपाल बनाए जाते हैं और 14 मार्च 1985 को साहब पंजाब के राज्यपाल की शपथ लेते हैं 6 माह के भीतर जलते हुए पंजाब की समस्या से निजात दिलाई गई। हालांकि यूनुस इस दौरान मध्य प्रदेश नहीं छोड़े यूनुस बतौर राज्यपाल के कार्यकाल में उनके साथ नहीं रहे बल्कि वह उन दिनों मध्य प्रदेश की उथल पुथल चल रही समस्त राजनीतिक गतिविधियों से उन्हें प्रतिदिन अवगत कराने की भूमिका अदा करते रहे।
यूनुस खान के जीवन में एक और घटनाक्रम जुड़ा है जब स्वर्गीय अर्जुन सिंह जी 1990 में बीमार हुए दिल्ली में उनकी सर्जरी हुई तब से यूनुस भोपाल छोड़कर दिल्ली में रहने लगे और निरंतर 4 मार्च 2011 तक यानी कि अर्जुन सिंह जी के निधन तक यूनुस निरंतर उनके साथ रहे उनकी सेवा में समर्पित रहे 42 वर्षों तक एक ऐसे राजनेता की सेवा में समर्पित एक लेखक का जीवन अनेक स्मृतियों से भरा हुआ है यूनुस बताते हैं कि एक बार रीवा से चुरहट आ रहा था तभी साहब ने हमसे कहा कि यह राव सागर तालाब है जानते हो यूनुस ने कहा हां दाऊ साहब कि समाधि यहीं पर है और हमारी भी यही पर रहेगी, स्वर्गीय अर्जुन सिंह जी के निधन के बाद वह अब राजधानी भोपाल में ही रहते हैं सीधी और संयुक्त सिंगरौली जिले के देवसर के निवासी होने के नाते और स्वर्गीय अर्जुन सिंह जी के विशेष सहयोगी के नाते उनका सीधी जिले से अच्छा नाता है स्वास्थ्य कारणों से भले वह आज अपने को सक्रिय भूमिका में नही रह पाते। किंतु 5 मार्च 2011 को जब वायुयान से अर्जुन सिंह जी का दिल्ली से पार्थिव शरीर हवाई पट्टी पनवार आया, तब भी उनके सगे परिवार के अलावा उस विमान से कोई और था , वो थे मो . यूनुस, जो इस बात की गवाही है कि मो यूनुस अर्जुन सिंह की के उस परछाइ की तरह थे जो शरीर विलीन होने के बाद ही उनसे अलग हो सके।






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👉संकठा प्रसाद दुबे✍️
रिटायर्ड सीसीएफ

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यूं तो जिले में बहुत अधिकारी आते है और चले जाते है, उनमें से कुछ यादगार रहते है और कुछ आदर्श उदाहरण देकर ऐतिहासिक हो जाते है, आज चर्चित चेहरे में एक ऐसे ही नायाब अधिकारी का उल्लेख जिसका नाम सुनकर उस दौर के हर व्यक्ति की आंखों में चमक आ जाती है, और वह आपको जरूर उस अधिकारी की साहस भरी कहानी बताएगा
आज कहानी रिटायर्ड डीएफओ संकठा प्रसाद दुबे की। जिनका जन्म मार्च 1943 में मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश की सीमा से सटे गांव बेलौहीं हनुमना - रीवा में हुआ।
संकठा रीवा दरबार कॉलेज से साइंस विषय मे स्नातक, और देहरादून की इंडियन फारेस्ट कॉलेज से डिप्लोमा इन फॉरेस्ट्री की योग्यता हासिल की, और 1981 में आईएफएस अवार्डेड हो गए। पढ़ाई के बाद जंगल विभाग की नौकरी 1966 में सहायक वन संरक्षक झाबुआ में शुरुआत हुई फिर अनेक जिलों और बढ़ते पदोन्नति के साथ 1981 मे सीधी आ गए और 1983 में डीएफओ पद पर नियुक्त हो गए ।

और ये दौर था जब जिले का ही नेता प्रदेश का मुख्यंमंत्री रहे स्वर्गीय अर्जुन सिंह जी के सी एम कार्यकाल में सीधी जिले में बेरोकटोक अवैध जंगलों की कटाई होती थी सीधी के कुछ तथाकथित वन माफिया इस कार्य में सम्मिलित थे जिले भर के जंगलों में इन वन माफियाओं की अराजकता के कारण जंगल बंजर हो गए थे , निजी भूमि पर मालिक मकबूजा यानी कि हरे पेड़ों की कटाई की स्वीकृत का अधिकार कलेक्टर के पास था डीएफओ की एनओसी के बाद मालिक मकबूजा की स्वीकृत होती थी लेकिन उस समय जहां जंगल नहीं होते थे सिर्फ दो चार पेड़-पौधे नाम मात्र होते थे उसी के आड़ पर कलेक्टर से टीपी लेकर अवैध तरीके से वनों की कटाई सीधी के तथाकथित वन माफिया किया करते थे। किंतु संकटा प्रसाद दुबे कि सीधी डीएफओ बनाए जाने के बाद मालिक मकबूजा का लाइसेंस टीपी एनओसी देने का सिलसिला बंद कर दिया गया इतना ही नहीं तीसरा कारक जलाऊ लकड़ी कोयला बनाने का सिलसिला भी सीधी में खूब फल फूल रहा था यह गोरखधंधा सीधी से इलाहाबाद बनारस के लिए वन माफिया सप्लाई किया करते थे मालिक मकबूजा की 126 ऐसी फाइलें लंबित थे जिस पर संकठा को NOC देनी थी ताकि कलेक्टर द्वारा टीपी जारी की जा सके लेकिन डीएफओ बनते ही संकठा ने इन फाइलों पर पानी फेर दिया इतना ही नहीं जलाऊ चट्ठा भी इन्होंने बंद कर दिया 1981 में अंतर्राजीय जलाऊ लकड़ी के परिवहन में बंदिशें लगा दी गई थी लेकिन यह नियम सीधी में वेअसर रहा संकठा के आते ही यूपी इलाहाबाद को जाने वाली यह जलाऊ लकड़ी की सप्लाई बंद कर दी गई फिर भी जलाऊ लकड़ी परिवहन प्रतिबंध के बावजूद सीधी के तथाकथित वन माफिया उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद बनारस की ओर सप्लाई कर रहे थे उसी दौरान संकठा ने औचक छापा मारकर तथाकथित सीधी के वन माफिया के दो ट्रक लकड़ी जप्त कर सीज कर दिया वन माफिया कोई और नहीं उस समय के एक तथाकथित भाजपा नेता थे जो सीधी में उस समय काफी भ्रम की स्थिति हुआ करती थी क्योंकि स्वर्गीय अर्जुन सिंह जी मुख्यमंत्री थे और कहीं ना कहीं वह माफिया अपने आप को सीएम साहब का संरक्षण मानते थे लेकिन ऐसा नहीं था जब संकठा ने ताबड़तोड़ कार्यवाही करना शुरू किया उन माफियाओं पर अंकुश लगाना शुरू किया तब दूध का दूध और पानी का पानी दिखाई देने लगा भ्रम की सारी स्थितियां दूर हो गई सीधी के पूर्व डीएफओ रहे संकठा बताते हैं कि एक समय था कि पूरे विंध्य क्षेत्र में बिरला फैक्ट्री को कागज बनाने के लिए बांस का ठेका मिला था उस जमाने में सीधी सहित तमाम बिंध्य क्षेत्र के जंगलों में बांस पर्याप्त थे लेकिन बिरला जैसे फैक्ट्री के पास बांस काटने का फरमान था भला कौन बिरला को बंदिशें लगा सकता है लेकिन पूर्व मंत्री रहे स्वर्गीय चंद्र प्रताप तिवारी ने बिरला को औकात बता दी वह वही वक्त था जब चंद प्रताप तिवारी ने कहा था सूखा बांस टूट सकता है लेकिन झुक नहीं सकता अर्थात क्षेत्र के उजड़ रहे जंगलों को बचाने की दिशा में चन्द्रप्रताप तिवारी ने वन मंत्री रहते हुए बिरला की परमिट रद्द कर दी और बांस के संरक्षण की प्रक्रिया वहीं से प्रारंभ हुई वह एक समय था जब पूरे विंध्य क्षेत्र सहित सीधी जिले के जंगलों में भारी संख्या में बांस के पौधे लगाए गए तब से सीधी के जंगलों में बांस के पौधे दिखाई देने लगे आज जो भी बांस के पौधे सीधी में दिखते होंगे वह उसी समय के पौधे हैं जो आज भी आवाद हैं । निरंतर 7 सालों तक बतौर डीएफओ रहने वाले संकट्ठा के पास उस समय सीधी में चैलेंज भरा समय था ।

👉 अपने जीवन की रोचक कहानी बयां करते हुए संकटा प्रसाद दुबे बताते हैं कि सीधी से जाने के कारण कांग्रेस सरकार की विदाई और बीजेपी सरकार का आगाज पिछले 7 सालों में मेरे द्वारा की गई कार्यवाही से आहत उन तथाकथित भाजपाइयों ने मेरा स्थानांतरण सीधी से मंदसौर के लिए करा दिया इतना ही नहीं डीएफओ रहते हुए जीवन की एक बड़ी झूठी वह मनगढ़ंत कहानी भी रची गई थी मेरे खिलाफ सीधी कोतवाली में एक तथाकथित नेता ने शिकायत की थी की रात में डीएफओ मेरे घर आए दरवाजा तोड़कर मारपीट की और गले में रिवाल्वर लगा दी और गाली गलौज किया क्योंकि इसके पीछे का कारण जो आया था एक तथाकथित सीधी के संभ्रांत नेताजी की आरा मशीन हमने सीज किया था कार्यवाही से आहत होकर झूठी शिकायत कराई गई किंतु मेरे खिलाफ f.i.r. नहीं कारण कि शिकायत झूठी थी उस दिन मैं सीधी से बाहर था इसी में तथाकथित नेताओं यानी जो अर्जुन सिंह जी के विरोधी थे उन्होंने यह बात विधानसभा तक पहुंचाई और मेरे खिलाफ विधानसभा में आवाज गूंजी इस मामले को लेकर फर्जी शिकायत की आवाज विधानसभा के पटल पर आवाज गूंजी रीवा के पूर्व विधायक राम लखन शर्मा ने झूठी शिकायत के मामले में विधानसभा के पटल पर बहस की उस दौरान मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार थी जिसके मुखिया थे पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय सुंदरलाल पटवा 8 घंटों की कार्यवाही के बाद मुख्यमंत्री स्वयं सदन पर खड़े होकर बोले कि 8 घंटों की कार्यवाही से जो तथ्य सामने उभर कर आए हैं वह बेबुनियाद हैं डीएफओ संगठा पर लगाए गए आरोप मिथ्या हैं तथ्यहीन हैं सीधी में उनके द्वारा वन माफियाओं पर की गई कार्यवाही का नतीजा है कि उनके खिलाफ कतिपय लोग आक्रोशित हैं मैं ऐसे डीएफओ संकटा को साधुवाद देता हूं और सीधी जिले से उन्हें मंदसौर जिले का डीएफओ नियुक्त करने का आदेश देता हूं।

संकटा प्रसाद दुबे जिस तन्मयता से सीधी जिले में अर्जुन सिंह जी के सीएम कार्यकाल में नैतिकता का परिचय दिया था ठीक उसी तरह सुंदरलाल पटवा के क्षेत्र में उन्होंने नैतिकता का परिचय देते हुए माफियाओं पर लगाम लगाई थी।
संकठा जंगल विभाग के अधिकारी होने के वाबजूद ऐसे अधिकारी थे जिनकी चर्चा उस समय सड़क से प्रदेश के सरवोच्य सदन तक होती थी।
सीधी के आम जन से उनकी एक प्रचलित कार्यवाही सुनने को मिलती है, की एक रेंजर की संदेहास्पद सड़क दुर्घटना में मृत्यु के कारण से इतने दुखी हुए कि उस समय जिले के एक दिग्गज नेता के लकड़ी का टाल जिसमे अवैध कारोबार धड़ल्ले से हो रहा था, उसे संकठा दुबे ने ऐसी तालाबंदी की जिसे आज तक कोई खोल नहीं सका।


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👉 प्रमोद पाण्डेय ✍️
एडवोकेट हाईकोर्ट

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तमाम मुसीबतों को पार करते हुए देवगढ गांव से चलकर आज उस मुकाम पर खड़े एक युवा वकील जिसकी सफलता से हम सीधी वासी गौरान्वित होते हैं , उनके पूरे जीवन के सफर पर नजर डालें तो एक ऐसी शख्सियत सामने आती है जिसने कठ‍िन संघर्ष के समय में एक अभिभावक का रोल अदा किया वह शख्सियत कोई और नही अपने ही बीच के विधायक केदारनाथ शुक्ल थे जिन्होंने इस युवा वकील की तकदीर गढी । तो आइए जानें उनके बारे में कौन है वह लायर .. जी हां आज एक ऐसे युवा एडवोकेट की चर्चा कर रहा हूँ जो मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय जबलपुर की वकालत पेशा में अपने आप को स्थापित करने मे सफल रहे हैं वह है अधिवक्ता प्रमोद कुमार पाण्डेय जिनका जन्म 16-10-1975 को ग्राम देवगढ़ सेमरिया मे हुआ था, आपकी प्रारंभिक शिक्षा माडल स्कूल सर्रा चुरहट मे तथा BSC आदर्श विज्ञान महाविद्यालय रीवा से वर्ष 1996 मे उत्तीर्ण किया, उस समय इनके पिता बसंत पाण्डेय जी प्राचार्य थे उन्होंने प्रमोद जी को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी हेतु भोपाल भेज दिया वहीँ ये प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करते हुए पिता जी के निर्देश पर स्टेट लां कालेज भोपाल में LLB मे एडमिशन लेकर कानून की पढ़ाई करने लगे ।

उस दौर में एक सुखद घटना की याद साझा करते हुए श्री पाण्डेयचेहरे चर्चित चार के लिये साझा करते हुये बताया कि वर्ष 1998 मे माननीय विधायक सीधी गोपद बनास विधानसभा से विधायक निर्वाचित होकर भोपाल आए मुझे भी खूब हर्ष था उनके विधायक निर्वाचित होने पर उनसे मिलने विधायक आवास पर पंहुचे जंहा उन्होंने कुशलक्षेम जाना पढ़ाई के बारे में चर्चा की, कुछ दिनों बाद माननीय का फोन आया और बोले कि प्रमोद तुम मेरे आवास में ही आकर यही अपनी पढाई करो तब मैं फूले नही समया इस सुखद क्षण को गैर सोचे समझे MLAरेस्टहाउस सिप्ट हो गया जंहा पर बेटे जैसा स्नेह प्राप्त कर वकालत की डिग्री हासिल किया । और वर्ष 2001 मे माननीय के मार्गदर्शन में मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय जबलपुर में वरिष्ठ अधिवक्ता स्वर्गीय कौशल प्रसाद मिश्र जी के जूनियर के रूप में वकालत का श्रीगणेश किया ।

वर्ष 2015 मे मध्यप्रदेश सरकार द्वारा इन्हें उच्च न्यायालय जबलपुर में शासकीय अधिवक्ता नियुक्त किया गया जंहा शासकीय अधिवक्ता के रूप में वह जनवरी 2019 तक वाखूवी अपने दायित्वों का निर्वहन किये, श्री पाण्डेय इसके पहले वर्ष 2001 से 2003 तक भूमि विकास बैंक सीधी एवं 2009 से 2014 तक नगर पालिका परिषद सीधी के स्टैडिंग काउन्सिल के रूप में भी कार्य कर चुके हैं , वर्तमान में श्री पाण्डेय वकालत के साथ,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मे नगर कार्यवाह के दायित्व का निर्वहन भी कर रहे हैं !अंत मे यह कहा जा सकता है कि जब नेक इरादा हो और ऊंचे लक्ष्य को हासिल करने की चाहत के साथ आगे बढा जाय तो मंजिल जरूर मिलती है इसी संकल्प के साथ धीर गंभीर व्यक्तित्व प्रमोद पाण्डेय ने वकालत पेशा में हाईकोर्ट मे जो पहचान बनाया है उसकी चर्चा होना स्वाभाविक है ।


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👉 मधुकर द्विवेदी✍️
वरिष्ठ पत्रकार

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आज हम बात कर रहे हैं पत्रकारिता साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में जाने-माने हस्ताक्षर की।विंध्य क्षेत्र के त्योंथर में जन्मे वरिष्ठ पत्रकार मधुकर जी का जन्म 30 नवंबर 1955 को हुआ। विंध्य के त्योंथर रीवा में पले-बढ़े मधुकर द्विवेदी ने एम ए की पढ़ाई उत्तर प्रदेश के प्रयागराज इलाहाबाद से की। और इसके बाद पत्रकारिता की ओर अपना रुख अपना लिया। अपनी 43 साल की पत्रकारिता के जीवन में उनकी पहली शुरुआत प्रयागराज से प्रकाशित दैनिक भारत समाचार पत्र में 1978 से शुरू हुई। इसके बाद 1980 में वह राष्ट्रीय हिंदी संवाद समिति समाचार भारती में उप संपादक रहे।देशभर में 4 प्रमुख न्यूज़ एजेंसी होती हैं जिसमें अंग्रेजी की दो और हिंदी की दो, अंग्रेजी में यू एन आई और पीटीआई और हिंदी में समाचार भारती और हिंदुस्तान समाचार प्रमुख न्यूज़ एजेंसियां हैं। जिनमें से हिंदी समाचार भारती जैसी न्यूज़ एजेंसी में दिल्ली में रहकर मधुकर ने 1982 तक पत्रकारिता की। इसके बाद वह 1983 में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल आ गए और 1986 से लेकर 2004 तक उज्जैन क्षेत्र मालवा से प्रकाशित प्रमुख अखबार दैनिक अवंतिका में वह 18 सालों तक राजधानी भोपाल में ब्यूरो प्रमुख रहे। जिसके बाद 2004 में एक बार फिर वह दिल्ली के लिए रवाना हो गए जहां राष्ट्रीय हिंदी दैनिक महा मेघा के संपादक रहे। 2008 में मधुकर जी अपनी जन्मभूमि विंध्य क्षेत्र के रीवा से 2008 में प्रकाशित दैनिक विंध्य भारत के संपादक रहे। उनके संपादकीय कार्यकाल के दौरान दैनिक विंध्य भारत को इस्टैबलिश्ड कराने के बाद वह फिर महा मीडिया के संपादक रहे। इसके बाद एक बार फिर वह अपने पुराने अखबार दैनिक अवंतिका में लौट आते हैं जहां उन्हें इंदौर एडिशन दैनिक अवंतिका के संपादक के तौर पर उन्हें कमान दी गई। इसके उपरांत वह विकास परक पत्रकारिता पर आधारित खुद की पत्रिका विकास गाथा का प्रकाशन शुरू किया इसके वह संपादक रहे। इसके अलावा वह आकाशवाणी विभिन्न टीवी चैनलों के डिबेट कार्यक्रम में शामिल होते रहे हैं मधुकर जी पिछले 5 सालों से वर्तमान में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आवाज बने हुए हैं और वहां पर छत्तीसगढ़ बंधु के संपादक मधुकर गंगा की गोद प्रयागराज से अपनी पत्रकारिता की शुरुआत की थी। जो उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश दिल्ली व छत्तीसगढ़ सहित अन्य महानगरों में अपनी पत्रकारिता की अमिट छाप छोड़ी है।आज मधुकर द्विवेदी देश प्रदेश की पत्रकारिता में वे बड़े चेहरे हैं, जिनकी राजनीतिक लेखनी व विश्लेषण से राजनीतिज्ञों की दिशा व दशा तय होती है।

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