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अजय सिंह राहुल भैया के जन्म दिवस पर विशेष-चुरहट जिनके दिल में बसता है............सोमेश्वर सिंह

चुरहट जिनके दिल में बसता है
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(सोमेश्वर सिंह)

जब कभी विंध्य प्रदेश के दूसरी राजनीतिक पीढ़ी का इतिहास लिखा जाएगा वह कांग्रेस नेता अजय सिंह राहुल भैया के बिना अधूरा रहेगा। आजादी के बाद दो दशक तक विंध्य प्रदेश समाजवादियों का गढ़ था। कांग्रेस को स्थापित करने करने तथा तिनका तिनका चुनकर पार्टी की मजबूत नींव तैयार करने में राहुल भैया के स्वर्गीय दाऊ साहब स्वर्गीय अर्जुन सिंह जी का बहुत बड़ा योगदान है। जिनके चलते समाजवादियों को कांग्रेस के सामने आत्मसमर्पण कर देना पड़ा। प्रदेश के राजनीति में जब तक अर्जुन सिंह सक्रिय रहे तब तक राहुल भैया राजनीतिक परिदृश्य में नहीं थे। दाऊ साहब को पंजाब का राज्यपाल बनाए जाने के उपरांत रिक्त चुरहट विधानसभा के उपचुनाव में स्वर्गीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी के निर्देश पर राहुल भैया चुरहट से चुनाव लड़े और 1985 में पहली मर्तबा मध्य प्रदेश विधानसभा में पहुंचे। देश के राजनीतिक इतिहास में वह पहला मौका था जब किसी प्रधानमंत्री ने किसी विधानसभा के उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में मत देने के लिए मतदाताओं के नाम अपील जारी की हो।
चुरहट की विधानसभा सीट राहुल भैया को विरासत में जरूर मिली थी, किंतु उन्होंने अपने राजनीतिक कौशल, दूरदर्शिता तथा सेवा भावना से अपना वजूद स्वत: स्थापित किया। आज वे मध्य प्रदेश में कांग्रेस के एक बड़े कद्दावर नेता के रूप में जाने जाते हैं। राहुल भैया ने कभी भी दाऊसाहब के प्रभाव का इस्तेमाल करके कभी कोई पद हासिल नहीं किया। पहली मर्तबा विधायक चुने जाने के 12 साल बाद 1997 में उन्हें मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जी नें मंत्रिमंडल में शामिल किया। राहुल भैया ने पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री के रूप में 5 साल का कार्यकाल पूरा किया। ग्रामीण स्तर पर आर्थिक और सामाजिक रूप से गरीबों के उत्थान के लिए अनेक योजनाएं बनाई। ग्रामीण कुटीर उद्योग, कृषि, सिंचाई, बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, सड़क तथा पर्यटन संस्कृति के क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण काम किया।
मौजूदा दौर में राजनीतिक दलों के स्थापित बड़े नेता अपने चिरंजीव को प्रारंभ से ही राजनीति में स्थापित करने में लग जाते हैं। विधायकी का पहला या दूसरा चुनाव जीतने के बाद ही मंत्री बनाए जाने की सिफारिश करते हैं। पिता के कंधे में बैठकर विधायक बनना तो सरल है किंतु पिता के पदचिन्हों पर चलकर निरंतर विधायक बने रहना थोड़ा सा मुश्किल काम है। और यही मुश्किल काम आगे जाकर चिरंजीवी का भविष्य तय करता है। राहुल भैया की राजनीतिक बुनियाद बड़ी ठोस और मजबूत है। यही वजह है कि आज वे किसी पद में नहीं है, किंतु विंध्य प्रदेश सहित मध्य प्रदेश में भी सर्वाधिक लोकप्रिय कांग्रेस नेता के रूप में जाने जाते हैं। राहुल भैया ने आत्म केंद्रित राजनीति कभी नहीं की। उन्होंने जनसेवा को लोकोपयोगी बनाया। इसीलिए उनकी आज लोग स्वीकार्यता है।
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अजय सिंह राहुल भैया के जन्म दिवस पर विशेष
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मध्य प्रदेश में कांग्रेस लगभग 20 साल से सत्ता से बाहर है। राहुल भैया 5 साल से विधायक भी नहीं है। लेकिन ऐसे आड़े वक्त में भी उन्होंने दिखा दिया कि यदि जज्बा और जुनून हो तो बिना पद और सत्ता के भी जन सेवा की जा सकती है। बहु प्रचारित सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं के बाद भी ग्रामीण स्तर पर गरीब धनाभाव और अज्ञानता के चलते स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं। अनेक गंभीर बीमारियों में उनकी असामयिक मौत हो जाती है । राहुल भैया ने सीधी जिला में अनेक निशुल्क स्वास्थ्य शिविर आयोजित कराया।गंभीर रोगियों को सुविधाजनक अस्पतालों तक पहुंचाकर उनका निशुल्क उपचार कराया। ऐसा कोई भी दिन नहीं जाता जब राहुल भैया किसी बीमार, असहाय की मदद ना करते हो। उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने असंख्य छात्रों, नौजवानों की मदद की। तकनीकी रूप से शिक्षित तथा योग्य बेरोजगार नौजवानों को दूर प्रदेश तक रोजगार दिलाने में मदद की। सार्वजनिक जीवन में उन्होंने राजनीतिक दुराग्रह के कारण कोई भेदभाव नहीं किया। जो भी उनके पास पहुंचा यथा योग्य मदद की।
दाऊसाहब राजनीति को जन सेवा का माध्यम मानते थे। इसीलिए उन्होंने तुलसी बाबा की चौपाई-" रामकाज कीन्हे ने बिना, मोहि कहां विश्राम" को जीवन का सूत्र वाक्य बना लिया था। राहुल भैया भी पिता के पद चिन्हों पर चल रहे हैं। 48 वर्षीय प्रत्यक्ष राजनीतिक यात्रा में महीने भर में 20 दिन जनसंपर्क तथा रेल यात्रा में गुजार देते हैं। किसी पद पर रहे हो या ना रहे हो आज भी उनकी यह यात्रा निरंतर जारी है। मध्य प्रदेश का कोई भी ऐसा जिला नहीं है जहां के पार्टी कार्यकर्ता अथवा शुभचिंतक उनसे सीधे संपर्क में ना हो। राहुल भैया के ही अथक परिश्रम और जनसंपर्क के कारण 1993 में तथा उसके बाद 2018 में कांग्रेस मध्य प्रदेश की सत्ता में पहुंची। यह इत्तेफाक था कि राहुल भैया दोनों मर्तबा चुनाव हार गए। तोल मोल की राजनीति कभी उन्होंने की नहीं। गुटबाजी, खेमे बाजी से उनका दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं। नीड एंड क्लीन पॉलिटिक्स करते हैं। जिसका उन्हें खामियाजा भी भुगतना पड़ता है।
दो मर्तबा वे मध्य प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे। व्यापम घोटाला, डंपर घोटाला और भ्रष्टाचार के अनेक मामलों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को विधानसभा में सीधे चुनौती दी। अनेक मुश्किलों के बाद भी न कभी झुके, ना रुके, ना टूटे। राजनीति में ऐसी शख्सियत बहुत कम मिलती हैं। पार्टी के भीतर और बाहर से उन पर दोहरे हमले होते रहे। पारिवारिक विवादों को न्यायालय से लेकर सार्वजनिक मंचों पर तूल देने की कोशिश की गई। राहुल भैया ने संजीदगी के साथ सभी चुनौतियों का सामना किया। कभी विचलित नहीं हुए। कांग्रेस की मुख्य राष्ट्रीय धारा तथा केंद्रीय नेतृत्व के प्रति निष्ठावान रहते हुए आज भी सौंपे गए दायित्वों का पालन कर रहे हैं। उम्र के इस पड़ाव में भी पूरी तरह फिट है। टीमवर्क की स्पिरिट से काम करते हैं। सीधी लोकसभा तथा सतना जिले के रैगांव व चित्रकूट विधानसभा उपचुनाव में कुशलतापूर्वक चुनाव प्रबंधन करके सकारात्मक परिणाम दे चुके हैं। चुरहट से उनका राजनीतिक नहीं पारिवारिक रिश्ता है। इसीलिए वे चुरहट को अपना परिवार मानते हैं। चुरहट उनके दिल में बसता है।हम सभी उनके यशस्वी और सफल राजनीतिक जीवन की कामना करते हैं।

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