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वाराणसी में अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद की 111 वीं जयंती पर श्रध्दा सुमन किया गया अर्पित...

वाराणसी(मनोज त्रिपाठी)- आज वाराणसी में देश के महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की 111 वीं जयंती पर विभिन्न जगहों पर श्रध्दा सुमन अर्पित कर , वहाँ आयोजित कार्यक्रम में लोगों ने उनके कृतित्व व व्यक्तित्व का बखान किया। प्रमुख आयोजन लहुराबीर स्थित आजाद पार्क में हुआ , जहाँ लोगों ने चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा पर श्रद्धा सुमन अर्पित कर , स्वाधीनता संग्राम में उनके योगदान का गुणगान किया।स्वाधीनता संग्राम से जुड़ी उनकी एक घटना , जिसके बाद उन्हें आजाद कहकर पुकारा जाने लगा , यहीं घटित हुई। विदित हो कि 23 जुलाई 1906 ई0 में उ0 प्र0 के उन्नाव जनपद के बदरखा गाँव मे एक सामान्य परिवार में चंद्रशेखर तिवारी का जन्म हुआ था। जब 15 वर्ष की अवस्था मे , अध्ययन के लिये वाराणसी आये तो इन्हें 1921 ई0 की जलियावाला बांग की घटना ने उद्वेलित कर दिया । जिसके बाद गांधी जी ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ असहयोग आंदोलन छेड़ दिया । इसी क्रम में क्रांतिकारियों के गढ़ बनारस में छात्रों का एक जत्था विदेशी कपड़ों की दुकान के बाहर धरना दे रहा था कि पुलिस पहुंच गई और लाठियां बरसानी शुरू कर दी। पंद्रह साल का एक बालक साथियों के सिर से खून निकलता देख आगबबूला हुआ और दारोगा पर पत्थर चला दिया। ये बालक और कोई नहीं आजाद ही थे। जिसके बाद अंग्रेजी हुकूमत ने चंद्रशेखर तिवारी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया और अगले दिन मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया । जब मजिस्ट्रेट ने नाम पूछा तो उन्होंने अपना नाम आजाद, मां का नाम धरती मां, पिता का स्वतंत्रता और घर जेल बताया। मजिस्ट्रेट ने उनके इस तेवर पर आग बबूला होकर 15 कोड़े मारने की सजा सुनाई । यहीं के शिवपुर सेंट्रल जेल में इस महान स्वतंत्रता सेनानी पर 15 कोड़े बरसाये गये , लेकिन हर बार भारत माता की जय बोलते गये। कोड़े खाने के बाद जेल से आजाद होने पर , चंद्रशेखर तिवारी को आजाद उपनाम भी यहीं के लोगों से मिला।

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