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UN में वीटो पावर वाले देश के मुखिया बने ऋषि सुनक, चीन और पाकिस्तान के लिए बड़ा झटका?....

नई दिल्ली (ईन्यूज एमपी)- ऋषि सुनक ने जैसे ही ब्रिटेन में बतौर प्रधानमंत्री सत्ता संभाली, भारत में उन्हें लेकर कई तरह की बहस शुरू हो गई. उनका नाम गूगल सर्च में ऊपर आने लगा और लोग उन्हें लेकर ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटाने लगे. भारत की तरफ से प्रधानमंत्री मोदी समेत तमाम बड़े नेताओं और शख्सियतों ने सुनक को बड़ी जिम्मेदारी मिलने पर बधाई दी. ऋषि सुनक ऐसे पहले भारतीय हैं, जो ब्रिटेन में इस पद तक पहुंच पाए हैं. हालांकि सुनक का भारतीय होना ही सिर्फ बड़ी बात नहीं है, सबसे खास बात ये है कि वो एक ऐसे देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचे हैं, जिसके पास यूएन में वीटो पावर है.


वीटो पावर शब्द आपने कई बार सुना और पढ़ा होगा, दरअसल ये एक ऐसी शक्ति है जिससे कोई वीटो पावर वाला देश यूएन में पेश किसी प्रस्ताव पर रोक लगा सकता है. ऐसे वीटो पावर वाले कुल पांच देश हैं. ये देश यूएन सिक्योरिटी काउंसिल के स्थायी सदस्य हैं. जब भी यूएन में कोई प्रस्ताव पेश किया जाता है तो इसे पास करने के लिए इन देशों का वोट काफी ज्यादा अहम हो जाता है. इन पांच देशों में चीन, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका शामिल हैं. इनमें से हर देश कई बार अपने वीटो पावर का इस्तेमाल कर चुका है.

वीटो का इतिहास

'वीटो' लैटिन भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है- निषेध करना या स्वीकृति न देना. अंग्रेजी में इसका अर्थ होता है- 'I forbid.' आसान तरीके से समझें तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य होने का मतलब है उस देश के पास वीटो पावर होना. संयुक्त राष्ट्र में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद क्या है, इसकी स्थायी सदस्यता क्या है, और क्या कोई देश इसे हासिल कर सकता है, यह समझना भी जरूरी है.


संयुक्त राष्ट्र कैसे बना?


2 सितंबर 1945 को द्वितीय विश्वयुद्ध खत्म हुआ तो यह जंग के बाद के परिणामों की पीड़ा के साथ दुनिया को छोड़ गया. युद्ध के परिणामस्वरूप चंद देश बेहद शक्तिशाली बनकर उभरे तो कई देशों में संघर्ष और अस्थिरता का दौर शुरू हुआ. भारत में उस समय स्वतंत्रता आंदोलन चरम पर चल रहा था. आखिर द्वितीय विश्वयुद्ध में जीतने वाले देशों ने अंतरराष्ट्रीय मामलों या संघर्षों में हस्तक्षेप कर मुद्दों का समाधान निकालने के लिए एक वैश्विक संस्था का गठन किया, जिसका नाम रखा गया संयुक्त राष्ट्र. 24 अक्टूबर 1945 में संयुक्त राष्ट्र का गठन हुआ. इसके लिए एक चार्टर यानी अधिकारपत्र पर 50 देशों ने हस्ताक्षर किए. इसका मुख्यालय अमेरिका के न्यूयॉर्क में बनाया गया. संयुक्त राष्ट्र के गठन के लिए एक उद्देश्य यह भी था कि भविष्य फिर कभी विश्व युद्ध न देखना पड़े.


संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंग


संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंग बनाए गए, इनमें संयुक्त राष्ट्र महासभा, संयु्क्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, संयुक्त राष्ट्र सचिवालय, संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद, संयुक्त राष्ट्र न्यास परिषद और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय शामिल हैं.


इनमें वीटो का संबंध संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कुल 15 देश शामिल हैं, जिनमें पांच स्थायी सदस्य हैं. 10 अस्थाई सदस्य देशों को दो-दो साल की अवधि के लिए चुना जाता है. स्थायी सदस्यों में अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन हैं. यानी इन्हीं पांच देशों के पास वीटो पावर है.


संयुक्त राष्ट्र चार्टर में वीटो


विदेश मंत्रालय के पूर्व विशेष सचिव और जेनेवा के यूएन कार्यालय में भारत के पूर्व स्थायी प्रतिनिधि रहे दिलीप सिन्हा ने अपनी किताब में वीटो संबंधी जानकारी दी है. सिन्हा की किताब के मुताबिक, संयुक्त राष्ट्र चार्टर यानी अधिकार पत्र कहा गया है कि सुरक्षा परिषद के P-5 यानी पांच स्थायी सदस्यों के पास वीटो होगा. चार्टर के अनुच्छेद 27.2 में कहा गया है कि सुरक्षा परिषद का फैसला नौ सदस्यों के अफरमेटिव वोट यानी पक्ष में वोट पड़ने से होगा, जिसमें उसी से मेल खाता हुए एक स्थायी सदस्य देश का वोट शामिल होना भी जरूरी है.


इसमें दो अपवाद हैं, प्रक्रियात्मक मामलों और विवादों के शांतिपूर्ण हल में यह लागू नहीं होगा. एक पक्ष का विवाद से दूरी बनाना जरूरी है. अक्टूबर 1944 में वाशिंगटन डीसी के डंबर्टन ओक्स में चार शक्तियों- अमेरिका, सोवियत संघ, यूके और चीन की ओर से इस प्रावधान को संयुक्त राष्ट्र चार्टर के मसौदे में शामिल किया गया था. फरवरी 1945 में याल्टा में फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट, जोसेफ स्टालिन और विंस्टन चर्चिल की ओर से इस प्रावधान की फिर से पुष्टि की गई थी

क्या किसी देश को मिल सकता है वीटो?


क्या किसी देश को वीटो पावर मिल सकता है? यह सवाल अक्सर सामने आता है. जानकारी के अनुसार, किसी देश को वीटो तभी मिल सकता है जब सुरक्षा परिषद के सभी पांच देशों में से कम से दो तिहाई (2/3) सकारात्मक वोट उसको मिलें.


यूएन में भारत का पक्ष होगा मजबूत?


ब्रिटेन, यूएन सिक्योरिटी काउंसिल का परमानेंट मेंबर है और चूंकि ऋषि सुनक भारतवंशी हैं इसलिए ऐसी अटकलें हैं कि उनका झुकाव भारत के प्रति होगा. भारत को इस लिहाज से फायदा मिलने की उम्मीद जताई जा रही है कि उसके किसी प्रस्ताव पर अगर जरूरत पड़ी तो वह ब्रिटेन से वीटो इस्तेमाल करने की उम्मीद कर सकता है. हालांकि, यह केवल कयासबाजी भर है.


अगर ब्रिटेन का झुकाव भारत की तरफ रहा तो इससे चीन और पाकिस्तान को टेंशन जरूर होगी. ऐसा अक्सर देखा गया है कि भारत के प्रस्ताव पर चीन ने वीटो लगाकर उसे रोक दिया. खासतौर पर जब पाकिस्तान में मौजूद आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई की बात होती है तो चीन हमेशा से ही अपनी ताकत का इस्तेमाल कर उसमें अड़ंगा लगाने का काम करता है. हालांकि, यह काम चीन अब भी कर सकता है. फर्क केवल यह है कि ब्रिटेन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के एक सहयोगी के रूप में पेश आ सकता है.


यूएन में स्थायी सदस्यता के लिए भारत की जंग


भारत भी पिछले कई दशकों से लगातार इस कोशिश में जुटा है कि किसी तरह वो यूएन सिक्योरिटी काउंसिल के स्थायी सदस्य देशों की लिस्ट में शामिल हो जाए. भारत यूएन के मंच से कई बार ऐसे संकेत दे चुका है कि उसे ये जिम्मेदारी दी जानी चाहिए. भारत कई बार यूएन का अस्थायी सदस्य बन चुका है, इसके अलावा कई ऐसे देश भी हैं जो हर मौके पर भारत को स्थायी सदस्यता देने के पक्ष में दिखते हैं लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो पाया है क्योंकि यूएन सिक्योरिटी काउंसिल के स्थायी सदस्यों में लंबे समय से ये पांच देश ही शामिल हैं, ऐसे में इसे लेकर हमेशा विवाद रहा है. इसे इन बड़े देशों की मोनोपॉली की तरह देखा जाता है. वीटो पावर में किसी भी तरह का संशोधन इन पांच स्थायी सदस्यों की रजामंदी के बगैर नहीं हो सकता है.


हालांकि, ऋषि सुनक के पीएम बनने पर जश्न का माहौल जरूर है और हर भारतीय को उनसे कई उम्मीदें भी हैं लेकिन ये आने वाले वक्त में ही पता चल पाएगा कि ऋषि का भारत को लेकर क्या रुख रहता है. फिलहाल उनके सामने अपने देश को महंगाई और आर्थिक तंगी से बाहर निकालने जैसी तमाम चुनौतियां हैं.

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