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Home सीधी दर्पण *कृष्ण की लीला मानव कल्याण की शिक्षा है-- बालाव्यंकटेश*

*कृष्ण की लीला मानव कल्याण की शिक्षा है-- बालाव्यंकटेश*

सीधी (ईन्यूज एमपी)-स्थानीय पूजापार्क में शुभारंभ संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा के छटवें दिन ब्यासपीठ की पूजा प्रमुख यजमानों तथा कथा व्यास बालाव्यंकटेश महराज वृन्दावनोपासक का माल्यार्पण से स्वागत वन्दन श्रीमती कुमुदिनी सिंह,लालमणि सिंह बरिष्ठ अधिवक्ता,मनोज कुमार तिवारी व्याख्याता, डाॅ श्रीनिवास शुक्ल सरस, सुरेन्द्र सिंह बोरा विजय सिंह धरौली,रामसखी गुप्ता आदि ने किया। कथा प्रसंग को उद्घाटित करते हुए महराज जी ने बताया कि गोवर्द्धन महराज आज भी अमर हैं।जो भी भक्त मनसा बाचा कर्मणा से उनके पास अपनी पीड़ा लेकर जाते हैं, उनकी परिक्रमा करते हैं निःसंदेह मनोकामना पूर्ण होती है।ब्यास जी ने बताया कि वृन्दावन प्रेम की भूमि और भक्ति की भूमि है।विवेक शून्य प्रेम के अनुसार पशु पक्षी गाय सब अपने आपको कृष्णमय मानते हैं।


विश्वभर प्रेम मे ग्वाल बालों का मानना है कि कृष्ण कहीं जा ही नही सकते हम सबको छोड़कर।

उत्कण्ठा प्रेम वियोग का प्रेम है जो कन्हैया ने नन्द यशोदा और गोपियों को दिया है क्योंकि उनके वियोग प्रेम में ही संयोग का दर्शन होता है।आगे व्यास बालाव्यंकटेश महराज ने कहा कि बद्रीनारायण के बड़े भाई हैं गिरिराज जी महराज। इसीलिए गिरिराज की लीला को रसावद्ध की लीला कही गई है।व्यास जी ने कहा की कृष्ण को जो गिरिधर कहकर पुकारते हैं उनको ये मीरा की तरह माया के थपोडों से बचाकर अपनी भक्ति से सराबोर कर देते हैं। प्रसंग के क्रम में व्यास महराज ने यह भी बताया कि विषम परिस्थिति में भी जो मानव धर्म से विचलित नही होते उनसे अच्छी कल्याणकारी शिक्षा कृष्ण की और क्या हो सकती है।कृष्ण के लीला का संदेश, मानव मात्र के कल्याण की शिक्षा है। प्रसंगवश आगे महराज जी ने बताया कि स्वाद और विवाद से जो बचा है वही रास का पोषक मान्य हुआ है। अतएव शुकदेव और परीक्षित के सम्बाद को मुख खाली रखकर श्रवण करना चाहिए क्योंकि मुख के भीतर भगवान की कथा तभी प्रवेश करेगी जब मुख खाली होगा। कथा में अनेक भजन प्रसंगानुसार चलते रहे और सम्प्रस्तुत श्रोतागण भाव विभोर होकर भक्ति गंगा में गोता लगाते रहे। मंच पर कृष्ण -रुक्मिणी का विवाह सजीव झाॅकी के साथ सम्पन्न हुआ जो बहुत ही मनोहारी तथा अवलोकनीय रहा।

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