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शारदीय नवरात्र का पहला दिन आज, मां शैलपुत्री की पूजा

आज नवरात्र का पहला दिन है। देशभर के देवी मंदिरों में सुबह से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखी जा रही है। मंगलवार से आश्विन मास में शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होकर नौ दिन तक चलने वाला नवरात्र शारदीय नवरात्र कहलाता है। देवी की अराधना का पर्व शारदीय नवरात्र मंगवार से शुरू हो गया है। मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा पाठ वाले इस पर्व का 21 अक्टूबर (बुधवार) को समापन होगा। इसके ठीक अगले दिन 22 अक्टूबर (गुरुवार) को दशहरा मनाया जाएगा।


नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है। यह ही नवदुर्गो की प्रथम दुर्गा है। पर्वत राज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा है। नवरात्र के पहले दिन इन्हीं की पूजा व उपासना की जाती है। इस दिन की उपासना में योगी अपने मन को चक्र में स्थित करते है और यहीं से उनकी योग साधना का प्रारंभ भी होता है। वृषभ सवार शैलपुत्री माता के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाए हाथ में कमल सुशोभित है।

यह मां पार्वती का ही अवतार है। दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव का अपमान होने के बाद सती योगाग्नि में भस्म हो गई थी, जिसके बाद उन्होंने हिमालय के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया। पर्वत की पुत्री होने के कारण उन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। मां शैलपुत्री की आराधना से मनोवांछित फल और कन्याओं को उत्तम वर की प्राप्ति होती है। साथ ही साधक को मूलाधार चक्र जाग्रत होने से प्राप्त होने वाली सिद्धियां हासिल होती हैं। मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं, इसलिए इन्हें पार्वती एवं हेमवती के नाम से भी जाना जाता है। मां शैलपुत्री की आराधना से मनोवांछित फल मिलता है।

नवरात्रि में दुर्गा को मातृ शक्ति, करूणा की देवी मानकर पूजा करते है। इसलिए इनकी पूजा में सभी तीर्थों, नदियों, समुद्रों, नवग्रहों, दिक्पालों, दिशाओं, नगर देवता, ग्राम देवता सहित सभी योगिनियों को भी आमंत्रित किया जाता और कलश में उन्हें विराजने हेतु प्रार्थना और उनका आहवान किया जाता है। प्रथम पूजन के दिन शैलपुत्री के रूप में भगवती दुर्गा दुर्गतिनाशिनी की पूजा फूल, अक्षत, रोली, चंदन से होती है।

कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

नवरात्र में कलश स्थापना के लिए 13 अक्टूबर को सुबह 11:36 बजे से दोपहर 12:24 बजे के बीच कलश स्थापना का मुहूर्त है

नवरात्र में देवी के यह हैं नौ रूप

'प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघंटेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
पंचमं स्क्न्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।।'

इस मंत्रोच्चार के साथ करें शैलपुत्री पूजा-
'वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥'

ॐ शैल पुत्रैय नमः एकाक्षरी बीज मंत्र का जाप करें।

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