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सुना फलाने : एक बार डंहकाये बामन वीर कहाये

मध्य प्रदेश में संपन्न उपचुनाव दीगर राज्यों से कुछ अलग थे। लोग कहते हैं कि उपचुनाव के परिणाम से सरकार की सेहत में कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं इससे इत्तेफाक नहीं रखता। क्योंकि फर्क पड़ता है और दिखता भी है। निवाड़, मालवा से अलहदा विंध्य प्रदेश की तासीर कुछ अलग है। यहां गरीबी है, बेकारी है, सरकारी लूट खसोट है। बावजूद इसके भी जनता बिकाऊ नहीं है। नेता भले बिक जाएं। रैगांव विधानसभा के उपचुनाव परिणाम से यह साबित हो गया है। विंध्य प्रदेश के मान, सम्मान, स्वाभिमान को जब कभी कोई चुनौती देता है तो ऐसे ही परिणाम होते हैं।

सीधी लोकसभा के उपचुनाव में जब कांग्रेस पार्टी से मानिक सिंह चुनाव जीते थे, तब भी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कुछ इसी तरह जोर आजमाइश की थी। जो रैगांव विधानसभा के उपचुनाव में कर रहे थे। तब भी सामने कांग्रेस के इकलौते योद्धा और चुनावी रणनीतिकार अजय सिंह राहुल थे। रैगांव में भी कुछ ऐसा ही था। रैगांव चुनाव परिणाम के बाद शायद कमलनाथ जी को कुछ समझ आ जाए।

किसी भी चुनाव में कार्यकर्ताओं को रिचार्ज करना पड़ता है। चुनावी कसावट और बुनावट का पैमाना भले एक हो, आपकी स्टर्जी भी एक हो, लेकिन टैक्टिकली स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप आपको कुछ अलग करना होता है। शायद रैगांव में अजय सिंह राहुल ने वही किया जो आप दीगर जगहों पर नहीं कर पाए।यही वजह थी कि कांग्रेस ने पृथ्वीपुर और जोबट की परंपरागत सीट को खो दिया। किसी भी अकलमंद हुनरमंद व्यक्ति का कद घात प्रतिघात से छोटा नहीं किया जा सकता। यदि आप उसे अपॉर्चुनिटी दे दे तो बेहतर है। यदि नहीं देंगे तो वह खोज लेगा।

कमलनाथ जी! जहां आपको सिर्फ पाना था, वहां खो दिया। जहां खोने के अलावा कुछ था नहीं, वहां पर पा गए। यदि आप रैगांव में अजय सिंह राहुल को फ्री हैंड नहीं छोड़ा होता तो वह भी न मिलता। देर आए दुरुस्त आए। अच्छा हुआ वक्त पर आपको सद्बुद्धि आ गई, अन्यथा आपने पुच्छले तो बहुत लगा दिए थे। विंध्य प्रदेश विनम्र है, सहनशील है। लेकिन संघर्षशील भी है। यह नहीं भूलना चाहिए। स्वर्गीय श्री अर्जुन सिंह जी के जीवन काल में आप मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। शायद वह टीस आज भी है। जिसका बदला आप अब भुना रहे हैं।

पॉलिटिकल मैनेजमेंट और बिजनेस मैनेजमेंट में फर्क होता है। यदि इस फर्क को आपने समझ लिया होता तो शायद मुख्यमंत्री पद की कुर्सी नहीं गवाना पड़ता। विंध्य प्रदेश को आपने अंडरस्टीमेट किया। सीनियर आदिवासी विधायक पूर्व मंत्री बिसाहूलाल सिंह जो आपके और दिग्गी राजा के विश्वसनीय थे। उन्हें मंत्रिमंडल में स्थान नहीं दिया। राजा और महाराजा दो नावों की सवारी करते रहे। अनुभवहीन लोगों को कैबिनेट मंत्री बना दिया। चित्रकूट विधायक प्रेम सिंह के निधन उपरांत रिक्त सीट पर नीलांशु चतुर्वेदी अजय सिंह राहुल के बलबूते पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की चुनौती के बाद भी चुनाव जीते। दोबारा फिर जीते। लेकिन आपने उन्हें मंत्रिमंडल में स्थान नहीं दिया। अपने चहेते सतना विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा को राज्य मंत्री तक नहीं बनाया।

यह वही अजय सिंह राहुल हैं जिन्होंने नेता प्रतिपक्ष रहते हुए मध्यप्रदेश विधानसभा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को वोट आफ नो कॉन्फिडेंस के मामले में ऐसा घेरा था की शिवराज जी के चेहरे में फेफरी जम गई थी। विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष राकेश चतुर्वेदी ने ऐन वक्त पर विश्वासघात कर दिया। जिसे आपने बाद में रीवा संभाग का कांग्रेस संगठन प्रभारी बनाया। उसी चतुर्वेदी को ज्योतिरादित्य सिंधिया नें अजय सिंह राहुल के विरोध के बाद भी काग्रेस में शामिल किया था।

पिछले लोकसभा चुनाव में जब आपके पुत्र नकुल नाथ छिंदवाड़ा से प्रदेश में इकलौते सांसद चुने गए थे, तब आप पुत्र को लेकर शिवराज सिंह के पास आशीर्वाद लेने गए थे। यह कैसी राजनीति थी। जिसे बेहतर ढंग से आप ही जानते होंगे। देश में कम्युनल फोर्सेस, मोनोपली हाउसेस ,मल्टीनेशनल कंपनियों के खिलाफ जिस मुस्तैदी और बेबाकी के साथ राहुल गांधी बोल रहे हैं, संघर्ष कर रहे हैं। प्रियंका गांधी वाड्रा उत्तर प्रदेश में प्रतिपक्ष का हिरावल दस्ता बन गई हैं। वही एक रास्ता है जो कांग्रेस को वापस ला सकता है।

मध्यप्रदेश में कांग्रेस प्रभावी ढंग से, सांगठनिक रूप से प्रतिपक्ष की भूमिका अदा नहीं कर पा रही है। आपके पास संसदीय अनुभव है। आप विधानसभा संभालिए। सदन के बाहर जमीनीस्तर पर कांग्रेस को मजबूत करने के लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद स्वेच्छा से छोड़िए। अजय सिंह राहुल को जिम्मेदारी दीजिए। सिर्फ अब यही विकल्प है। अन्यथा आगामी विधानसभा उसके बाद लोकसभा चुनाव में किसी चमत्कार की प्रत्याशा मत कीजिए।क्योंकि हमारे बघेली में एक कहावत है "एक बार डहकाये, बामन वीर कहाये"।

सोमेश्वर सिंह " सोम "

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