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Home मध्य प्रदेश प्रेम मार्ग ही भगवद प्राप्ति का श्रेष्ठ मार्ग- पं. अंकितकृष्ण

प्रेम मार्ग ही भगवद प्राप्ति का श्रेष्ठ मार्ग- पं. अंकितकृष्ण

विदिशा(ईन्यूज एमपी)- पुरुषोत्तम मास के पावन अवसर पर राजीवनगर स्थित बालाजी एवेन्यू में चल रही श्रीमद्भागवत कथा महोत्सव के तीसरे दिन गौवत्स पंडित अंकितकृष्ण वटुकजी महाराज ने कहा कि धर्मशास्त्रों की मर्यादा का पालन करना ही सनातन धर्म का वास्तविक आश्रय है। वटुकजी महाराज ने कहा कि आज मनुष्य बाहरी चकाचौंध में लुप्त हो रहा है जो कि अल्प समय के लिए है। और अपने वास्तविक स्वरूप को भूलता जा रहा है।

वटुकजी महाराज ने ध्रुवजी के चरित्र को श्रवण कराते हुए कहा कि राजा उत्तानपाद की दो रानियों ने दो पुत्रों को जन्म दिया। रानी सुनीति के पुत्र का नाम 'ध्रुव' और सुरुचि के पुत्र का नाम 'उत्तम' रखा गया। पिता की गोद में बैठने को लेकर सुरुचि ने ध्रुव को फटकारा तो माँ सुनीति ने पुत्र को सांत्वना देते हुए कहा कि वह परमात्मा की गोद में स्थान प्राप्त करने का प्रयास करे। माता की सीख पर अमल करने का कठोर व्रत लेकर ध्रुव ने पांच वर्ष की आयु में ही राजमहल त्याग दिया और एक पैर पर खड़े होकर छह माह तक कठोर तप किया। बालक की तपस्या देख भगवान ने दर्शन देकर उसे उच्चतम पद प्राप्त करने का वरदान दिया। इसी के बाद बालक ध्रुव की याद में सर्वाधिक चमकने वाले तारे का नामध्रुवतारादिया गया। इसलिए जिसे जगत नहीं देता। उसे जगदीश्वर देकर परम पद प्रदान करता है। वटुकजी महाराज ने भक्त प्रहलाद की कथा श्रवण कराते हुए कहा कि एक बार असुरराज हिरण्यकशिपु विजय प्राप्ति के लिए तपस्या में लीन था। मौका देखकर देवताओं ने उसके राज्य पर कब्जा कर लिया। उसकी गर्भवती पत्नी को ब्रह्मर्षि नारद अपने आश्रम में ले आए। वे उसे प्रतिदिन धर्म और विष्णु महिमा के बारे में बताते। यह ज्ञान गर्भ में पल रहे पुत्र प्रहलाद ने भी प्राप्त किया। बाद में असुरराज ने बह्मा के वरदान से तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर ली तो रानी उसके पास आ गई। वहाँ प्रहलाद का जन्म हुआ।
बाल्यावस्था में पहुँचकर प्रहलाद ने विष्णु-भक्ति शुरू कर दी। इससे क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने अपने गुरु को बुलाकर कहा कि ऐसा कुछ करो कि यह विष्णु का नाम रटना बंद कर दे। गुरु ने बहुत कोशिश की किन्तु वे असफल रहे। तब असुरराज ने अपने पुत्र की हत्या का आदेश दे दिया।
उसे विष दिया गया, उस पर तलवार से प्रहार किया गया, विषधरों के सामने छोड़ा गया, हाथियों के पैरों तले कुचलवाना चाहा, पर्वत से नीचे फिंकवाया, लेकिन ईश कृपा से प्रहलाद का बाल भी बाँका नहीं हुआ। तब हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका को बुलाकर कहा कि तुम प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठ जाओ, जिससे वह जलकर भस्म हो जाए। भगवान पग-पग पर अपने भक्त की रक्षा की। क्योंकि प्रहलाद ने भगवान का नाम नहीं छोड़ा। वटुकजी महाराज ने अजामिल उपाख्यान, गजेंद्र मोक्ष, वामन अवतार आदि कथाओं को विस्तार पूर्वक श्रवण कराया। कथा प्रतिदिन सायंकाल 7:30बजे से रात्रि 10:30 बजे तक चल रही है। कथा में आज़ भव्य कृष्ण जन्मोत्सव मनाया जायेगा। जिसके लिए आयोजक परिवार द्वारा भव्य तैयारियां की जा रही है संपूर्ण कथा परिसर को गुब्बारे और फूलों द्वारा सजाया जायेगा।इस बालाजी एवेन्यू के सभी रहवासी एवं आसपास के अनेक भक्त कथा श्रवण कर रहे हैं। आयोजक परिवार सुधा जौहरी, अनुपम जौहरी, कथा के मुख्ययजमान नीलिमा-प्रवीण जौहरी एवं जौहरी परिवार ने सभी नगरवासियों से अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित होकर धर्मलाभ लेने की अपील की..।

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