सीधी (ईन्यूज़ एमपी): कभी बाघों की दहाड़ से गूंजने वाला सफेद शेर की जन्मस्थली संजय टाइगर रिजर्व अब शिकारी और लापरवाह अफसरों के लिए ‘स्वर्ग’ बन चुका है। ताजा मामला दुबरी परिक्षेत्र के खरबर जंगल का है, जहां 11 हजार केवी बिजली लाइन से काटकर फैलाए गए करंट जाल में बाघ T-43 की मौत हो गई। अब तक सालभर के भीतर चार बांघों की हुई मौत के बाबजूद राजेश कन्ना जैसे अफसर कुम्भकर्णी नींद से नही जागे हैं । बाघ गया, करंट गया… पर विभाग का ‘करंट’ अभी तक नहीं आया: वन विभाग ने पहले इसे ‘ग्रामीणों की फसल बचाने का प्रयास’ बताकर टाल दिया, लेकिन जब मीडिया और ग्रामीणों ने सवाल दागे तो विभाग की कहानी तार-तार हो गई। आखिरकार दबाव में आकर तीन शिकारी पकड़े गए, जिनमें एक शिक्षक भी शामिल है। सवाल ये कि क्या बाघों को बचाने का काम अब गांववालों और खोजी कुत्तों को करना पड़ेगा? राजेश कन्ना बने ‘आराम कन्ना: सालभर में चार बाघों की मौत हो चुकी है, लेकिन रिजर्व के उपसंचालक राजेश कन्ना का हाल देखिए—बाघ कट रहे हैं जंगल में और साहब ‘सरकारी रैस्क्यू वाहन डॉक्टर साहब से हंथिया कर आराम फरमाने की पुरजोर कोशिशें कर डाली। खैर इस मसले पर बड़का साहब ने उनकी मंसूबों पर पानी फेर दिया । वरना वह रैस्क्यू वाहन पर आज कन्ना सवारी करते...। फिलहाल लोग अब तंज कस रहे हैं कि “रिजर्व में टाइगर घट रहे हैं और अफसर का वजन बढ़ रहा है।” सवालों के घेरे में वन विभाग: T-33, T-43 समेत चार टाइगरों की रहस्यमय मौत! हर बार ‘कहानी’ वही — ग्रामीणों पर ठीकरा, असली गुनहगार गायब! जब लोग सड़कों पर गरजे तो विभाग जागा और ‘कुशलता’ दिखाते हुए शिकारी पकड़ लिए। अब जनता पूछ रही है — क्या बाघों की मौत पर भी विभाग की जांच उतनी ही तेज होगी जितनी ‘परेड और प्रेस विज्ञप्ति’ जारी करने में होती है? असल सवाल यही है कि क्या संजय टाइगर रिजर्व बाघों का ‘आश्रय स्थल’ है या फिर ‘आखिरी ठिकाना’?