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दिग्गजों कि मुलाकात से बदलें राजनीति के हालात, फिलहाल अजय और नरोत्तम चुपचाप....?

सीधी (ईन्यूज एमपी)- सियासत और राजनीति यह दोनों एक ही सिक्के के दो ऐसे अलग-अलग पहलू हैं जो एक दूसरे के पूरक तो है पर इसमें जरूरी नहीं जो दिखता है वही सही हो या जो सही है वह हमेशा दिखाई ही दे, अक्सर सियासत का ऊंट करवट बदलता रहता है जिसका खामियाजा कहीं ना कहीं किसी ना किसी को भुगतना ही पड़ता है, फिर चाहे उदाहरण कहीं का भी लिया जाए। सरकारें भी राजनीतिक उठापटक के फेर में बदल जाती हैं अभी ताजा उदाहरण यदि देखा जाए तो एमपी में एक दिग्गज के पाला बदलते ही शासन सत्ता का पतन हो गया और आगामी क्षतिपूर्ति की बाट जोह रहें सत्ताहीनो के लिए उम्मीद के बदले कहीं और झटके तो इंतजार नहीं कर रहे जिसकी झलक नरोत्तम और अजय ने दिखाई है....?


जी हां बता दें कि लंबे इंतजार के बाद सत्ता में आई कांग्रेस की नैया को डुबोकर सिंधिया ने बीजेपी का दामन थामा ही था कि अब सियासी घटनाक्रमों की ओर गौर करें तो कांग्रेश में भरपाई की जगह बढ़ती खाई दिख रही है। और इसी सब के बीच अजय और नरोत्तम ने बंद कमरे में मुलाकात कर सियासी पारे को और ऊपर चढ़ा दिया है। कांग्रेश के पाले में लम्बे समय से जमे होने के बाद भी इस बार विधानसभा और लोकसभा दोनों में शिकस्त खा चुके अजय सिंह ने सोमवार को गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा से फोन पर मिलने का समय मांगा और शाम को उनके आवास पर मिलने भी पहुंचे लगभग 40 मिनट तक दोनों दिग्गजों के बीच बंद कमरे में बातचीत से बावजूद इन दोनों ने सार्वजनिक रूप से किसी से कुछ नहीं कहा अब इस मुलाकात का कारण चाहे जो भी रहा हो लेकिन यह राजनीति है और इसमें पहले से तय कुछ भी नहीं होता इसी बात को आधार मानते हुए कयास लगाए जा रहे हैं कि कहीं कांग्रेश के खेमे से एक और विदाई तो नहीं लिखी.....

अजय सिंह और नरोत्तम की मुलाकात के बाद उक्त चर्चा होने के पीछे एक वजह यह भी है कि अजय सिंह द्वारा पूर्व में सार्वजनिक रूप से अपनी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ की कार्यप्रणाली पर बयान बाजी की जा चुकी है। उन्होंने कहा था कि अपनी क्षमता का ठीकरा विंध्य पर ना मढ़ा जाए, इस तरह के बयान से विंध्य का अपमान होता है, साथ ही पार्टी के कार्यकर्ता और जनप्रतिनिधि इससे नाराज हो जाते हैं, और 2020 में सरकार गिरने का कारण विंध्य नहीं बल्कि कमलनाथ खुद है।

खैर दिग्गजों की मुलाकात थी और दिग्गजों की बात थी उनके मन की और कमरे के भीतर की बात भला कोई क्या जाने पर स्वाभाविक है कि दो विरोधियों के एक कमरे में गोपनीय वार्तालाप कहीं ना कहीं किसी बड़े राजनीतिक बदलाव या घटनाक्रम की ओर इशारा करते हैं और इसके पूर्व भी कुछ ऐसी घटनाएं घट चुकी है जिनकी किसी को उम्मीद नहीं थी और वैसे भी यह राजनीतिक आउट है ना जाने कब किस करवट बैठ जाए ........?

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