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पॉलिटिकल पोस्टमार्टम कमलनाथ

सुना फलाने //394//
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पॉलिटिकल पोस्टमार्टम कमलनाथ
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पिछले लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ सीधी संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस प्रत्याशी अजय सिंह राहुल का चुनाव प्रचार करने आए थे। दक्षिणी आदिवासी अंचल के एक गांव में उनकी चुनावी सभा थी। उन्होंने सभा को संबोधित करते हुए कहा दिल्ली राहुल देखेंगे ।भोपाल मै संभालूंगा। संयोग से न राहुल दिल्ली पहुंचे, न कमलनाथ भोपाल बचा पाए। उत्सुकतावश मैं कमलनाथ के पालिटिकल कैरियर का पोस्टमार्टम करने लगा। कमलनाथ की पारिवारिक पृष्ठभूमि व्यावसायिक है। दून स्कूल में वे संजय गांधी के सहपाठी थे। आपातकाल में संजय गांधी के साथ उनकी राजनीतिक नजदीकियां बढ़ी। संजय गांधी तब तक युवक कांग्रेस नेता के रूप में स्थापित हो चुके थे। वे प्रधानमंत्री के पुत्र थे। स्वभाव से डिक्टेटर थे। देश में उनकी तूती बोलती थी। उड़ीसा की मुख्यमंत्री नंदनी सत्पथी को छोड़कर अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री अपनी कुर्सी बचाने के लिए संजय गांधी के इशारे पर नाच रहे थे।

केंद्र में जनता पार्टी की खिचड़ी सरकार आंतरिक अंतर्विरोध के कारण गिर गई। लोकसभा भंग कर दी गई। चुनाव की घोषणा हो गई। तब मध्यप्रदेश में नेता प्रतिपक्ष स्वर्गीय अर्जुन सिंह जी हुआ करते थे। मध्य प्रदेश में लोकसभा की 40 सीटें थी। दिल्ली में अर्जुन सिंह इंदिरा गांधी के साथ कांग्रेस प्रत्याशियों की सूची को अंतिम रूप देने गए थे। एक सीट को छोड़कर 39 सीटों में प्रत्याशी तय किए जा चुके थे। अर्जुन सिंह जी के अंतिम समय तक मोहम्मद यूनुस उनके निज सचिव थे। उन्होंने एक मुलाकात के दौरान चर्चा में मुझे बताया था कि-" इंदिरा जी ने साहब से पूछा कमलनाथ का क्या होगा"। तब अर्जुन सिंह ने कहा -"आप इन्हें मुझे दे दीजिए"। इंदिरा जी ने पूछा कहां से लड़ाएंगे"। अर्जुन सिंह ने कहा- छिंदवाड़ा से जिता कर लाएंगे"। और हुआ भी यही। कमलनाथ की राजनीतिक एंट्री हो गई। उस जमाने में कमलनाथ को यह नहीं मालूम था कि छिंदवाड़ा किस चिड़िया का नाम है। छिंदवाड़ा के ही एक चुनावी सभा में इंदिरा जी ने कमलनाथ को तीसरा पुत्र कहा था।

वक्त बीता। राजनीति अपने गति से चलती रही। संजय गांधी, इंदिरा जी ,राजीव गांधी नहीं रहे। दुखी सोनिया गांधी ने कांग्रेस से किनारा कर लिया। अर्जुन सिंह जी के समझाने बुझाने पर किसी तरह से मृतप्राय कांग्रेस को पुनर्जीवित करने के लिए राजी हुई। वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में कांग्रेस की वापसी हुई। दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बने। यूनुस जी बताते हैं कि कमलनाथ मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के लिए बेचैन थे। क्योंकि तब तक दिल्ली टू भोपाल का राजनीतिक रास्ता व्हाया अर्जुन सिंह हो चुका था। कमलनाथ सीधे साहब से बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे ।उन्होंने स्वर्गीय हरबंस सिंह तथा भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार अरुण पटेल के माध्यम से अर्जुन सिंह तक अपनी बात पहुंचाई। साहब ने कहा-" उनसे कहिए मध्यप्रदेश को बख्श दे, वह उनके बस का नहीं है"।

कमलनाथ कहां मानने वाले थे। मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का सपना उन्हें टीस रहा था। अति राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण कभी-कभी व्यक्ति अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाता। इस संबंध में उन्होंने साहस जुटाया। सकुचाते हुए अर्जुन सिंह के समक्ष अपनी बात खुद रखी। साहब ने स्वभावत असहमति जताते हुए कहा-" कमलनाथ जी मध्य प्रदेश को भूल जाइए, वह आपके बस का नहीं है"। अर्जुन सिंह के न रहने के बाद दिल्ली से भोपाल का रास्ता कमलनाथ के लिए सरल था। अब बचे चतुर सुजान दिग्विजय सिंह। वह भी राजनीति के मजे हुए खिलाड़ी हैं। वे अजय सिंह राहुल तथा ज्योतिरादित्य सिंधिया दोनों को मध्य प्रदेश की बागडोर नहीं देना चाहते थे ।कमलनाथ को दिल्ली की राजनीति से बाहर करना चाहते थे। इत्तेफाक से अजय सिंह राहुल चुनाव हार गए। दिग्विजय सिंह की रणनीति सफल हो गई। कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाकर कृतज्ञ कर दिया। बाद में इसी कृतज्ञता को उपकृत करने के फेर में कमलनाथ सरकार चली गई।

मध्य प्रदेश एक राजनीतिक प्रयोगशाला है। यहां जो कुट- पिट जाए, तप- खप जाए, वहीं दिल्ली की राजनीति में टिक पाता है। दिल्ली से टपकाया हुआ नेता प्रदेश में सफल नहीं होता। क्योंकि प्रदेश की जमीनी हकीकत, उसकी तासीर, बुनावट का अनुभव उसके पास नहीं होता। दिल्ली के राजनीति में पका पकाया माल मिलता है। लेकिन प्रदेश में खिचड़ी खुद पकानी पड़ती है। चंबल संभाग में राजमाता विजय राजे सिंधिया के मुकाबले माधवराव सिंधिया के माध्यम से कांग्रेस को स्थापित करना कितना दुरूह काम रहा होगा। ग्वालियर में अटल जी को माधवराव सिंधिया से चुनाव हराना। प्रदेश की सभी 40 सीटों पर कांग्रेस को चुनाव जिताना। समाजवादियों के गढ़ विंध्य प्रदेश में कांग्रेस को स्थापित करना। यह चमत्कार स्वर्गीय अर्जुन सिंह ही कर सकते थे।

बहरहाल भाग्य ने साथ दिया। कमलनाथ पीसीसी चीफ के साथ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बना दिए गए। संख्या बल नजदीकी था। उन्होंने मंत्रिमंडल गठन में वरिष्ठता का ध्यान नहीं रखा। नए नवेले विधायकों को कैबिनेट मंत्री बना दिया जो अनुभवी नहीं थे। दोहरी जिम्मेदारी को कमलनाथ ठीक ढंग से नहीं चला पाए। लोकसभा चुनाव में छिंदवाड़ा से उनके पुत्र नकुल नाथ के अलावा प्रदेश में कांग्रेस सभी सीट हार गई। कमलनाथ में इसकी भी कोई नैतिक जिम्मेदारी नहीं ली। संगठन और सरकार को व्यावसायिक प्रतिष्ठान की तरह संचालित करने लगे। सीएम ऑफिस से लेकर सीएम हाउस तक निज सचिव आरके मिगलानी के हवाले कर दिया। मुख्यमंत्री का कामकाज मिगलानी देख रहे थे। जिनका रुतबा और रूआब मुख्यमंत्री के कद से भी बड़ा था। चापलूस कैबिनेट मंत्री मिगलानी का चरण वंदन करते थे।

मुख्यमंत्री और उनके निज सचिव मिगलानी के इस आचरण से ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थित मंत्री, विधायक उपेक्षित और अपमानित महसूस करने लगे। कमलनाथ सिंधिया के बीच दूरियां बढ़ी। टकराव की स्थिति निर्मित होने लगी। भोपाल से दिल्ली तक नाराज सिंधिया के बगावती सुर गूंज रहे थे। सिंधिया के अपने समर्थकों सहित भाजपा में शामिल होने की पुख्ता खबरें आ रही थी। बावजूद इसके भी कमलनाथ ने सुलह समझौता अथवा डैमेज कंट्रोल करने का कोई प्रयास नहीं किया। अपने अहंकार में डूबे रहे। उल्टा "आ बैल मुझे सींघ मार" की तर्ज पर सिंधिया को उकसाते रहे। यहां तक की उन्हें सड़क में उतर आने की चुनौती तक दे डाली। राजनीति में अनुभव और परिपक्वता भर ही पर्याप्त नहीं है। राजनेता को दूरदर्शी होना चाहिए। उसे चुनौतियां का सामना करने, किसी भी विषम परिस्थिति को अपने अनुकूल बनाने की क्षमता और कला भी होनी चाहिए। उसे डायनामिक होना चाहिए।

जानकारों के मुताबिक जब मध्य प्रदेश का पॉलटिकल क्राइसिस अपने क्लाइमेक्स पर था। कमलनाथ दिल्ली प्रवास पर थे। उन्हे भोपाल वापस लौटना था। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सीएम हाउस में उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। कमलनाथ दिल्ली से वापस लौटे। वहां पर मौजूद नेताओं से सिर्फ इतना कहा-" सिंधिया का भाजपा में जाना तय है"। और बिना किसी विचार विमर्श के आवास के भीतर चले गए। पता नहीं कमलनाथ को सरकार बचाए रखने के लिए किस चमत्कार का भरोसा था। उस समय यदि कमलनाथ के पास हनी ट्रैप मामले का कोई पेनड्राइव था तो वह कांग्रेसी विधायकों को रोक सकते थे। दबाव बनाकर भाजपा विधायकों को भी कांग्रेसमें ला सकते थे। विंध्य प्रदेश से निर्वाचित सीनियर विधायक तथा पूर्व मंत्री बिसाहूलाल तो सिंधिया खेमे के नहीं थे। फिर कमलनाथ उन्हें भी क्यों नहीं रोक पाए।

अपनी अयोग्यता और असफलता के कारण कमलनाथ ने मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवा दी। उल्टा चोर कोतवाल को डांटे की तरह अपनी विफलता का दोषारोपण विंध्य प्रदेश पर लगा रहे। चंबल संभाग में कांग्रेस की लुटिया पहले ही डुबो चुके हैं। और अब बची खुची कसर विंध्य प्रदेश में निकाल रहे हैं। यदि वे विंध्य प्रदेश में कांग्रेस संगठन को निष्क्रिय अथवा नकारा मानते हैं तो वे पीसीसी चीफ की हैसियत से ऐसे लोगों को हटा दें। जिला कॉन्ग्रेस कमेटियों में नई नियुक्तियां कर दें। अलग से जिला कांग्रेस संगठन प्रभारी नियुक्त करने की क्या जरूरत है। यह तो एक तरह से समानांतर कांग्रेस संगठन खड़ा करना है। लगता है कमलनाथ संगठन में प्रभारी के रूप में अपना करिदां बैठाना चाहते हैं। उनके इस अविवेकपूर्ण फैसले से संगठन में टकराव बढ़ेगा।

खबर है कि रीवा जिला में राकेश चतुर्वेदी को कांग्रेस का संगठन प्रभारी नियुक्त किया गया है। चतुर्वेदी का रिपोर्ट कार्ड क्या है, यह सभी जानते हैं। विधानसभा में तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव रखा था। जिस पर सदन में तीखी चर्चा हो रही थी। शिवराज सिंह के चेहरे से हंसी गायब थी। हवाइयां उड़ रही थी। बचाव में उन्हें कोई जवाब नहीं सूझ रहा था। ऐसे नाजुक वक्त में सदन के उप नेता प्रतिपक्ष राकेश चतुर्वेदी ने निर्लज्जता के साथ यू टर्न लेते हुए शिवराज सिंह का बचाव किया। चतुर्वेदी के विश्वासघात से सदन में अविश्वास प्रस्ताव गिर गया। कांग्रेस से राकेश चतुर्वेदी के निष्कासन फिर वापसी की एक अलग कहानी है।

स्वर्गीय अर्जुन सिंह एक दूरदर्शी राजनेता थे।वे कमलनाथ की काबिलियत जानते थे। शायद इसीलिए उन्होंने कभी कमलनाथ से कहा था-" मध्य प्रदेश को भूल जाइए, वह आपके वश का नहीं है"। कमलनाथ ने मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने और गवाने से लेकर अब तक अपने आचरण से यह साबित भी कर दिया ।

सोमेश्वर सिंह
वरिष्ठ पत्रकार
सीधी

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